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Channel: नीरज
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खार जैसे रह गए हम डाल पर

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सभी पाठकों को नव वर्ष की शुभकामनाएं



सांप, रस्सी को समझ डरते रहे 
और सारी ज़िन्दगी मरते रहे 

खार जैसे रह गए हम डाल पर 
आप फूलों की तरह झरते रहे 

थाम लेंगे वो हमें ये था यकीं 
इसलिए बेख़ौफ़ हो गिरते रहे 

तिश्नगी बढ़ने लगी दरिया से जब 
तब से शबनम पर ही लब धरते रहे 

छांव में रहना था लगता क़ैद सा, 
इसलिये हम धूप में फिरते रहे 

रात भर आरी चलाई याद ने, 
रात भर ख़़ामोश हम चिरते रहे 

जिंदगी उनकी मज़े से कट गई 
रंग ‘नीरज’ इसमें जो भरते रहे


(ये ग़ज़ल श्री पंकज सुबीर जी के पारस स्पर्श से सोना हुई है )

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