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Channel: नीरज
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गुलमुहर के पेड़ नीचे

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देश में गर्मी अपने पूरे रंग में है लेकिन यहाँ खोपोली में बादलों ने हलके से आहट देनी शुरू कर दी है. गर्मियों का अपना आनंद होता है इसी विषय पर पंकज जी के ब्लॉग पर पिछले साल एक तरही मुशायरा हुआ जिसमें दिया गया मिसरा " और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की वो दुपहरी"पर पेश की गयी खाकसार की ग़ज़ल अब मेरे ब्लॉग पर पढ़िए और गर्मियों को दुआएं दीजिये.



आम, लीची सी रसीली, गर्मियों की वो दुपहरी
और शहतूतों से मीठी, गर्मियों की वो दुपहरी

फालसे, आलू बुखारों की तरह खट्टी-ओ-मीठी
यार की बातों सी प्यारी, गर्मियों की वो दुपहरी

थे पिता बरगद सरीखे और शीतल सी हवा माँ
तो लगा करती थी ठंडी, गर्मियों की वो दुपहरी

भूलना मुमकिन नहीं है, गुलमुहर के पेड़ नीचे
साथ हमने जो गुजारी, गर्मियों की वो दुपहरी

कूकती कोयल के स्वर से गूँजती अमराइयों में
प्यार के थे गीत गाती, गर्मियों की वो दुपहरी

बिन तेरे उफ़! किस कदर थी जानलेवा यार लम्बी
और सन्नाटे में डूबी, गर्मियों की वो दुपहरी

सर्दियों में भी पसीना याद कर आता है 'नीरज'
तन जलाती चिलचिलाती, गर्मियों की वो दुपहरी

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