
मैं राजी तू राज़ी है
पर ग़ुस्से में क़ाज़ी है
आंखें करती हैं बातें
मुंह करता लफ्फाजी है
जीतो हारो फर्क नहीं
ये तो दिल की बाज़ी है
तुम बिन मेरे इस दिल को
दुनिया से नाराजी है
कड़वा मीठा हम सब का
अपना अपना माजी है
सब में रब दिखता जिसको
वो ही सच्चा हाजी है
दर्द अभी कम है ‘नीरज’
चोट अभी कुछ ताज़ी है
( ये ग़ज़ल गुरु देव पंकज सुबीर जी का मिडास टच लिए हुए है )