( आपके सहयोग और प्यार के कारण इस ब्लॉग ने पांच वर्ष पूरे कर लिए हैं. 5 सितम्बर 2007 से अब तक याने इन पांच वर्षों में उपलब्धि के नाम पर 285 पोस्ट,11000 से अधिक टिप्पणियां, एक लाख चौबीस हज़ार से अधिक बार देखे गए पेज और 435 सदस्य नहीं है बल्कि वो अद्भुत अटूट रिश्ते हैं जो इस ब्लॉग के कारण ही बन पाए हैं. )
अभी हाल ही में गुरुदेव पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर तरही मुशायरे का आयोजन हुआ था. मुशायरा नवोदित शायर अर्श की शादी के उत्सव पर आयोजित किया गया था लाज़मी था के उसमें प्यार के अलग अलग रंग बिखेरतीं ग़ज़लें आयें और आयीं भी. प्यार के इतने रंग उस तरही में बिखरे के हर कोई उसमें सराबोर हो गया. उसी मुशायरे में भेजी खाकसार की ग़ज़ल यहाँ भी पढ़ें:-
हर अदा में तेरी दिलकशी है प्रिये
जानलेवा मगर सादगी है प्रिये
भोर की लालिमा चाँद की चांदनी
सामने तेरे फीकी लगी है प्रिये
लू भरी हो भले या भले सर्द हो
साथ तेरे हवा फागुनी है प्रिये
बिन तेरे बैठ आफिस में सोचा किया
ये सजा सी, भी क्या नौकरी है प्रिये
पास खींचे, छिटक दूर जाए कभी
उफ़ ये कैसी तेरी मसखरी है प्रिये
मुस्कुराती हो जब देख कर प्यार से
एक सिहरन सी तब दौड़ती है प्रिये
फूल चाहत के देखो खिले चार सू
प्रीत की अल्पना भी सजी है प्रिये
पड़ गयी तेरी आदत सी अब तो मुझे
और आदत कहीं छूटती है प्रिये ?
मन सरोवर में खुशियों के 'नीरज' खिले
पास आहट तेरी आ रही है प्रिये