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Channel: नीरज
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पीसते हैं चलो ताश की गड्डियां

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चाय की जब तेरे साथ लीं चुस्कियां 
ग़म हवा हो गए छा गयीं मस्तियाँ 

दौड़ती ज़िन्दगी को जरा रोक कर 
पीसते हैं चलो ताश की गड्डियां 

जब तलक झांकती आंख पीछे न हो 
क्या फरक बंद हैं या खुली खिडकियां 

जान ले लो कहा जिसने भी, उसको जब 
आजमाया लगा काटने कन्नियाँ 

जिनमें पत्थर उठाने की हिम्मत नहीं 
ख़्वाब  में तोड़ते हैं वही मटकियां 

प्यार के ढोंग से लाख बहतर मुझे 
आप देते रहें रात दिन झिड़कियां 

कौन सुनता है "नीरज" सरल सी ग़ज़ल 
कुछ धमाके करो तो बजें सीटियाँ

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