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Channel: नीरज
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किताबों की दुनिया - 75

आज के युग में ये बात बहुत आम हो गयी है के लोग अपनी असलियत छुपा कर जो वो नहीं हैं उसे दिखाने की कोशिश करते हैं और ऐसे मौकों पर मुझे साहिर साहब द्वारा फिल्म इज्ज़त के लिए लिखा और रफ़ी साहब द्वारा गाया एक...

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जैसे की कोई बच्चा हँसता हो खिलखिलाकर

आप सब को दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं हर बात पे अगर वो बैठेंगे मुंह फुला कर रूठे हुओं को कब तक लायेंगे हम मना कर सच बोल कर सदा यूँ दिल खुश हुआ हमारा जैसे की कोई बच्चा हँसता हो खिलखिलाकर अपने रकीब को...

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किताबों की दुनिया-76

उनकी ये जिद कि वो इंसान न होंगे, हरगिज़ मुझको ये फ़िक्र, कहीं मैं न फ़रिश्ता हो जाऊं भूल बैठा हूँ तेरी याद में रफ़्तार अपनी मुझको छू दे कि मैं बहता हुआ झरना हो जाऊं बंद कमरे में तेरी याद की खुशबू लेकर...

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जहाँ उसूल दांव पर लगे वहां उठा धनुष

इस बार दिवाली के शुभ अवसर पर गुरुदेव पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर तरही मुशायरा आयोजित किया गया. तरही का मिसरा था "घना जो अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे" इस मिसरे के साथ शिरकत करने वाले शायरों और कवियों ने...

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किताबों की दुनिया - 77

नए प्रोजेक्ट के सिलसिले में इन दिनों लगभग हर महीने दो तीन दिनों के लिए गाजिआबाद और दिल्ली जाना पड़ रहा है. ज़िन्दगी अभी मुंबई -जयपुर और दिल्ली के बीच घूम रही है. अटैची पूरी तरह खुलती भी नहीं के फिर से...

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खार जैसे रह गए हम डाल पर

सभी पाठकों को नव वर्ष की शुभकामनाएंसांप, रस्सी को समझ डरते रहे और सारी ज़िन्दगी मरते रहे खार जैसे रह गए हम डाल पर आप फूलों की तरह झरते रहे थाम लेंगे वो हमें ये था यकीं इसलिए बेख़ौफ़ हो गिरते रहे...

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किताबों की दुनिया -78

शायरी और समंदर में एक गहरा रिश्ता है इनमें जितना डूबेंगे उतना आनंद आएगा। उथली शायरी और उथले  समंदर में कोई ख़ास बात नज़र नहीं आती लेकिन जरा गहरी डुबकी लगायें, आपको किसी और ही दुनिया में चले जाने का...

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डालियों पे फुदकने से जो मिल गयी

मुश्किलों की यही हैं बड़ी मुश्किलें आप जब चाहें कम हों, तभी ये बढ़ें अब कोई दूसरा रास्ता ही नहीं याद तुझको करें और जिंदा रहें बस इसी सोच से, झूठ कायम रहा बोल कर सच भला हम बुरे क्यूँ बनें  डालियों पे...

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किताबों की दुनिया -79

लोग फिर भी घर बना लेते हैं भीगी रेत परजानते हैं बस्तियां कितनी समंदर ले गया उस ने देखे थे कभी इक पेड़ पर पकते समर साथ अपने एक दिन कितने ही पत्थर ले गया समर: फल रुत बदलने तक मुझे रहना पड़ेगा मुन्तजिर...

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जो आँधियों में दीपक थामे हुए खड़ा है

गुरुदेव पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर इस बार बसंत पंचमी के अवसर पर हुए मुशायरे में अद्भुत ग़ज़लें पढने को मिलीं। सम सामयिक विषयों पर शायरों ने खूब शेर कहे। उसी तरही, जिसका मिसरा था " ये कैदे बा-मशक्कत जो...

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किताबों की दुनिया -80

जयपुर से मुंबई आना जाना आजकल महीने में दो बार होने लगा है, जयपुर एयरपोर्ट पर जो किताबों की दूकान है उसका मैनेजर अब मुझे पहचानने लगा है। अब वो मेरे दुकान में दाखिल होने पर पहले ही बता देता है के शायरी...

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करें जब पाँव खुद नर्तन

होली के बारे में आम धारणा ये है कि ये एक उमंगों भरा त्योंहार है जो साल में एक बार आता है, ये बात सही है लेकिन मेरा मानना है की होली आनंद की एक अवस्था है जो जब आपके मन में उत्पन्न हो होली हो जाती है।...

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किताबों की दुनिया - 81

आप में से बहुत से दिल्ली तो जरूर गए होंगे लेकिन शायद कुछ लोग ही महरौली गए हों, महरौली जो क़ुतुब मीनार के पीछे है और जहाँ की भूल भुलैय्याँ , जो अब सरकार द्वारा बंद कर दी गयीं हैं, बहुत प्रसिद्द हैं,...

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पीसते हैं चलो ताश की गड्डियां

चाय की जब तेरे साथ लीं चुस्कियां ग़म हवा हो गए छा गयीं मस्तियाँ दौड़ती ज़िन्दगी को जरा रोक कर पीसते हैं चलो ताश की गड्डियां  जब तलक झांकती आंख पीछे न हो क्या फरक बंद हैं या खुली खिडकियां  जान ले लो कहा...

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किताबों की दुनिया - 82

कहती है ज़िन्दगी कि मुझे अम्न चाहिए ओ' वक्त कह रहा है मुझे इन्कलाब दो इस युग में दोस्ती की, मुहब्बत की आरज़ू जैसे कोई बबूल से मांगे गुलाब दो जो मानते हैं आज की ग़ज़लों को बेअसर पढने के वास्ते उन्हें...

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नीम के ये पेड़

हो खफा हमसे वो रोते जा रहे हैं और हम रुमाल होते जा रहे हैं नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे  सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं पत्थरों से दोस्ती कर ली है जब से आईने पहचान खोते जा रहे हैं कब तलक दें फूल...

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किताबों की दुनिया - 83

("इस ब्लॉग से आप सब के प्यार का नतीजा है ये 301 वीं पोस्ट" )*********जागती आँखों ही से सोती रहती हूँ मैं पलकों में ख़्वाब पिरोती रहती हूँ तेजाबी बारिश के नक्श नहीं मिटते मैं अश्कों से आँगन धोती रहती...

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अलग राहों में कितनी दिलकशी है

ज़ेहन में आपके गर खलबली है बड़ी पुर-लुत्फ़ फिर ये ज़िन्दगी है  पुर लुत्फ़ : आनंद दायक अजब ये दौर आया है कि जिसमें गलत कुछ भी नहीं,सब कुछ सही है मुसलसल तीरगी में जी रहे हैं ये कैसी रौशनी हमको मिली है...

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किताबों की दुनिया - 84

 आज की किताब का जिक्र करने से पहले चलिए थोड़ी सी अर्थ हीन भूमिका बाँधी जाय .अर्थ हीन इसलिए के इसके बिना भी किताब की बात की जा सकती है . हुआ यूँ की इस बार जयपुर प्रवास के दौरान वहां के दैनिक भास्कर अखबार...

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खोलिए आँख तो सवेरा है

बंद रखिए तो इक अँधेरा है खोलिए आँख तो सवेरा है सांप यादों के छोड़ देता है शाम का वक्त वो सँपेरा है फ़ासला इक बहुत जरूरी है यार के भेष में बघेरा है ताजपोशी उसी की होनी है मुल्क में जो बड़ा लुटेरा है...

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