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Channel: नीरज
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ठुकरा दो या प्यार करो

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बारिश तो लगभग रुक गयी थी लेकिन कोहरा अभी भी कायम था जब 19 जनवरी 2014 को जयपुर से सिकंदरा बाद जाने वाली गाड़ी सीहोर स्टेशन पर अपने निर्धारित समय सुबह के 7. 30 बजे से दो घंटे देर से पहुंची। ए.सी. कोच से उतरते ही ठंडी हवा के थपेड़े ने जोरदार वाला स्वागत किया। मुंह से गर्म भाप निकालते हुए मैं अभी चंद कदम चला ही था के सामने से कोहरे को चीरते सर पर टोपी पहने, मफलर लपेटे, जैकेट की जेब में हाथ डाले पंकज सुबीर तेज क़दमों से चलते नज़र आ गए।

सिहोर मेरे लिए तीर्थ स्थान है। पहली बार जब आया था तो मुझे इसने श्री रमेश हठीला सम्मान से सम्मानित किया और दूसरी बाद इसने मुझे मेरी पहली (और शायद एकमात्र ) पुस्तक के विमोचन के लिए बुलाया है। ये दोनों घटनाएं ऐसी हैं जो जीवन में कभी घटित होंगी ऐसा सपने में भी नहीं सोचा था।

पंकज जी से मेरी मुलाकात सात साल पहले नेट के माध्यम से हुई उन्हीं से ग़ज़ल का ककहरा सीखने की कोशिश की. उन्होंने बहुत कुछ समझाने की कोशिश की लेकिन मेरी बुद्धि इतनी विकसित नहीं थी के उनकी बताइ सभी बातें समझ में आ जातीं। उनसे , प्राण साहब से द्विजेन्द्र द्विज जी से और मयंक अवस्थी जी से जो थोडा बहुत सीखा उसी के सहारे ग़ज़ल कहने की कोशिश शुरू की। ब्लॉग पर पाठक पढ़ते रहे हौसला अफजाही करते रहे और मैं लिखता रहा. पिछली बार के सीहोर प्रवास के दौरान गौतम राजरिश ने सबसे पहले मुझे ग़ज़लों की एक किताब छपवाने का आग्रह किया , आग्रह क्या एक दम कनपटी पर फौजी कि तरह बन्दूक तान कर हुक्म दिया की नीरज जी आपकी एक किताब सालभर के अंदर अंदर छप कर आनी ही चाहिए और पंकज जी को भी हिदायद दी की इसके लिए आपको ही नीरज जी की मदद करनी है। अब साहब जान किसे प्यारी नहीं होती इसलिए हम दोनों जुट गए इस जबरदस्ती के लादे काम पर क्यूँ की फौजी को कौन समझाता की भाई इस किताब को पढ़ेगा कौन और खरीदेगा कौन ? हमें पता था कि फौजी अफसर कुछ भी बर्दाश्त कर सकता है लेकिन हुक्म उदूली बर्दाश्त नहीं करता इसलिए गौतम को समझाने की बात ठन्डे बस्ते में डाल कर हमने किताब छपवाने की और ध्यान देना शुरू कर दिया।

पत्नी श्री को जब ये बात बतायी तो उसने कहा जीवन में और कुछ तो आपने चर्चा योग्य किया नहीं इसलिए चलो एक किताब ही छपवा लो इस से कम से कम अच्छी या बुरी चर्चा तो होगी आपकी।

रास्ते भर मैं और पंकज जी मौसम और देश की राजनीति कि चर्चा करते रहे क्यूँ कि हम दोनों जानते थे कि किताब और उसका शायर चर्चा योग्य नहीं है। कड़कती ठण्ड की शाम 4.30 बजे समय पर शुरू हुए गरिमा मय में कार्यक्रम में आखिर "डाली मोगरे की"किताब का विमोचन हो ही गया।


कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी तो आपको पंकज जी के ब्लॉग http://subeerin.blogspot.in/पर मिल जायेगी यहाँ तो मैं सिर्फ ये कहना चाहता हूँ कि ये किताब आप सब के लिए है इसलिए आपको इसकी प्राप्ति के लिए सिर्फ मुझे अपने पते का SMS भेजना है और कुछ नहीं। मेरा मोबाईल न। 09860211911 है.


अब ये किताब आपकी है "ठुकरा दो या प्यार करो "

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