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Channel: नीरज
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किताबों की दुनिया - 85

“किताबों की दुनिया” श्रृंखला के लिए शायरी की किताबें ढूंढते वक्त मुझे अहसास हुआ है के आजकल लोगों में किताबें छपवाने का शौक चर्राया हुआ है। दो मिसरों से रचित एक शेर में पूरी बात कह देने वाली ग़ज़ल जैसी...

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हर तस्वीर अधूरी है

 (पेशे खिदमत है ,छोटी बहर में एक निहायत सादा सी ग़ज़ल) ये कैसी मजबूरी है जो लोगों में दूरी है क्यूँ फिरता पगलाया सा तुझमें ही कस्तूरी है बात सुई से ना सुलझे तो तलवार जरूरी है तुम बिन मेरे जीवन की हर...

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किताबों की दुनिया - 86

देवियों और सज्जनों क्या आपने जयपुर के "नवरत्न प्रजापति"का नाम सुना है ? अरे ये क्या आपतो बगलें झाकने लगे। शर्मिंदा न हों मैंने कौनसा सुना था , ये तो भला हो गूगल का जिसकी मेहरबानी से ये नाम पता चला।...

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कोह सा अकड़ा खड़ा रहता था जो

नीरज शर्मा जो मेरे पडौसी हैं कल सुबह सुबह दांत निकाले मेरे घर आये। वैसे वो हमेशा दांत निकाले ही आते हैं लेकिन इस बार उनके दांत अपेक्षा कृत अधिक निकले हुए थे. ये आने वाले खतरे का सिग्नल था. उनके हाथ में...

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किताबों की दुनिया - 87

सुब्हों को शाम, शब को सवेरा नहीं लिखा हमने ग़ज़ल लिखी है क़सीदा नहीं लिखा ख़त यूँ तो मैंने लिक्खा है तफ़सील से उन्हें लेकिन कहीं भी हर्फ़े-तमन्ना नहीं लिखा जिससे फ़क़त अमीरों के चेहरे दमक उठें       उस...

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राह तयकर इक नदी सी

( एक पुरानी ग़ज़ल नए पाठकों के लिए )  कब किसी के मन मुताबिक़ ही चली है जिन्दगी राह तयकर इक नदी सी, ख़ुद बही है जिन्दगी ये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा तेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी...

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किताबों कि दुनिया - 88

सभी पाठकों को दीपावली कि हार्दिक शुभकामनाएं रिवायती ग़ज़लों की किसी किताब का जिक्र किये एक लम्बा अरसा बीत गया है . आप गौर करें तो पाएंगे कि पिछले कुछ सालों में ग़ज़ल लेखन के क्षेत्र में क्रांति सी आ...

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आप भी तो अब पुराने हो गये

दूर होंठों से तराने हो गये हम भी आखिर को सयाने हो गये यूं ही रस्ते में नज़र उनसे मिली और हम यूं ही दिवाने हो गये दिल हमारा हो गया उनका पता हम भले ही बेठिकाने हो गये खा गई हमको भी दीमक उम्र की आप भी तो...

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किताबों कि दुनिया -89

मिरी ज़िन्दगी किसी और की, मेरे नाम का कोई और है मिरा अक्स है सर-ए-आईना, पसे -ए -आईना कोई और हैन गए दिनों कि ख़बर मिरी, न शरीके हाल नज़र तिरी तिरे देश में, मिरे भेष में कोई और था कोई और है   न मकाम का, न...

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मुश्किल है ये जीवन, इसे आसान करेंगे

इन दिनों शादियों का सीजन अपने चरम पर है , हर शहर गली मुहल्लों में शादियों कि धूम मची हुई है। जिनकी हो रही है वो बहुत खुश हैं जिनकी नहीं हुई वो होने कि आस लगाए बैठे हैं और जिनकी हो गयी है वो गा रहे हैं...

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किताबों की दुनिया - 90

सभी पाठकों को नव वर्ष कि ढेरों शुभकामनाएं*****ख़ुशी के गीत लिखेगी हयात फूलों पर बया ने टांग दिए घौंसले बबूलों पर सुनहरी राहों पे चलते तू भी थका होगाजरा सा बैठ लें इन घास के दुकूलों पर 'नज़र जहान में होते...

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बच्चों से घर चहके यूँ

ग़ज़ल जंगल की कोयल है सर्कस की नहीं जो ट्रेनर के इशारे पे गाये सो जनाब अरसा गुज़र जाने पे भी जब कोई ग़ज़ल नहीं हुई तो मैं परेशान नहीं हुआ फिर अचानक ज़ेहन कि मुंडेर पे ये कोयल बैठी दिखी जिसने मुश्किल से एक...

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ठुकरा दो या प्यार करो

बारिश तो लगभग रुक गयी थी लेकिन कोहरा अभी भी कायम था जब 19 जनवरी 2014 को जयपुर से सिकंदरा बाद जाने वाली गाड़ी सीहोर स्टेशन पर अपने निर्धारित समय सुबह के 7. 30 बजे से दो घंटे देर से पहुंची। ए.सी. कोच से...

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किताबों की दुनिया - 91

"किताबों की दुनिया"श्रृंखला अब अपने शतक की और बढ़ रही है। मुझे लगता है कि जैसे अभी तो शुरुआत ही हुई है। न जाने कितने शायर और उनकी शायरी अभी जिक्र किये जाने योग्य है। मैं कितनी भी कोशिश करूँ पर फिर भी...

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सूर्यास्त

सोचता हूँ आज आपको अपनी दोयम दर्ज़े कि ग़ज़ल पढ़वाने के बजाय एक ऐसी अद्भुत रचना पढ़वाई जाय जिसकी मिसाल हिंदी साहित्य में ढूंढें नहीं मिलती ( कम से कम मुझे ). इस बार दिल्ली के पुस्तक मेले में मुझे बरसों से...

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किताबों की दुनिया -92

नगर में प्लास्टिक की प्लेट में खाते तो हैं लेकिन मुझे वो ढाक के पत्तल ओ दोने याद आते हैं  कभी मक्का की रोटी साग या फिर मिर्च की चटनी पराठें माँ के हाथों के तिकोने याद आते हैं  मेरा बेटा तो दुनिया में...

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किताबों की दुनिया - 93

देश इस समय चुनावी दौर से गुज़र रहा है। हर दल अपनी अपनी पुंगी बजा कर मत दाता को लुभाने में लगे हैं। बहुत कम हैं जो देश के विकास की बात कर रहे हैं अधिकाँश को दूसरों के धर्म भाषा सूरत सीरत आदि में कमियां...

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किताबों की दुनिया -94

सावन को जरा खुल के बरसने की दुआ दो हर फूल को गुलशन में महकने की दुआ दो मन मार के बैठे हैं जो सहमे हुए डर से उन सारे परिंदों को चहकने की दुआ दो वो लोग जो उजड़े हैं फसादों से, बला से लो साथ उन्हें फिर से...

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किताबों की दुनिया - 82

कहती है ज़िन्दगी कि मुझे अम्न चाहिए ओ'वक्त कह रहा है मुझे इन्कलाब दो इस युग में दोस्ती की, मुहब्बत की आरज़ू जैसे कोई बबूल से मांगे गुलाब दो जो मानते हैं आज की ग़ज़लों को बेअसर पढने के वास्ते उन्हें...

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किताबों की दुनिया - 95

दिन एक सितम, एक सितम रात करो हो  वो दोस्त हो, दुश्मन को भी तुम मात करो हो हम को जो मिला है वो तुम्हीं से तो मिला है हम और भुला दें तुम्हें ? क्या बात करो हो दामन पे कोई छींट न खंज़र पे कोई दाग़ तुम क़त्ल...

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