Quantcast
Channel: नीरज
Viewing all articles
Browse latest Browse all 279

किसी शजर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे

$
0
0
(गुरुदेव पंकज सुबीर द्वारा आशीर्वाद प्राप्त ग़ज़ल)



अजल से है ये बशर की आदत, जिसे न अब तक बदल सका है
ख़ुदा ने जितना अता किया वो, उमीद से कम उसे लगा है
अजल: अनंतकाल

किसी शजर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे
तभी तलक ये करें बसेरा दरख्‍़त जब तक हरा भरा है
शजर : पेड़

जला रहा हूँ हुलस हुलस कर, चराग घर के खुले दरों पर
न आएंगे वो मुझे पता है, मगर ये दिल तो बहल रहा है

यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत
फकीर हो या नवाब सबको, कफन वही ढाई गज मिला है

चलो हवाओं का रुख बदल दें, बदल दें नदियों के बहते धारे
जुनून जिनमें है जीतने का, ये उनके जीवन का फलसफा है

रहा चरागों का काम जलना, मगर हमीं ने कभी तो उनसे
किया है घर को किसी के रौशन, किसी के घर को जला दिया है

जरा सी बदलोगे सोच अपनी तो फिर सभी से यही कहोगे
इसे समझते रहे बुरा हम, जहां ये लेकिन बहुत भला है

किसे दिखाए वो दाग दिल के, किसे दुखों की कथा सुनाये
अज़ाब ऐसा है ये कि जिससे अदीब तनहा तड़प रहा है
अज़ाब= पीड़ा, सन्ताप, दंड : अदीब= विद्वान :

जो सुब्ह निकले कमाने घर से, थके हुए दिन ढला तो लौटे
तुम्हारा मेरा, सभी का नीरज, यही तो बस रोज़नामचा है

Viewing all articles
Browse latest Browse all 279

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>