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Channel: नीरज
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फूल कर कुप्पा हुआ करती थीं जिस पर रोटियां

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गुरुदेव पंकज सुबीर जी ब्लॉग पर हाल ही में एक तरही मुशायरे का आयोजन हुआ था जिसमें "इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में" या "कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गाँव में " मिसरे पर ग़ज़ल कहनी थी. गाँव के माहौल पर उस मुशायरे में देश विदेश के बेहतरीन शायरों ने एक से बढ़ कर एक खूबसूरत ग़ज़लें भेजीं. पेश है उस मुशायरे में भेजी खाकसार की ग़ज़ल.



मेरे बचपन का वो साथी है अभी तक गाँव में
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में

फूल कर कुप्पा हुआ करती थीं जिस पर रोटियां
माँ की प्यारी वो अंगीठी, है अभी तक गाँव में

ज़हर सी कडवी बहुत हैं इस नगर में बोलिया
हर जबां पर गुड़ की भेली, है अभी तक गाँव में

शहर में देखो जवानी में बुढ़ापा आ गया
पर बुढ़ापे में जवानी, है अभी तक गांव में

कोशिशें उसको उठाने की सभी ज़ाया हुईं
इक अजब सी नातवानी, है अभी तक गाँव में
नातवानी= अक्षमता, निर्बलता, असामर्थ्य

सारे त्योंहारों पे मिल कर मौज मस्ती नाचना
रोज पनघट पे ठिठोली, है अभी तक गांव में

पेट भरता था जिसे खा कर मगर ये मन नहीं
ढूध वाली वो जलेबी, है अभी तक गांव में

दोस्ती, अख़लाक़, नेकी, अदबियत, इंसानियत
जानिसारी, खाकसारी है अभी तक गाँव में

जिस्म की पुरपेच गलियों में कभी खोया नहीं
प्यार तो "नीरज" रूहानी है अभी तक गाँव में

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