
दोस्तों आपको याद होगा पिछले दिनों पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर एक तरही मुशायरे का आयोजन किया गया था जिसमें पेश मेरी ग़ज़ल आप पिछली पोस्ट में पढ़ चुके हैं. उसी मुशायरे के आखिर में उस्ताद शायर "भभ्भड़"पूरा भांग का मटका चढ़ा कर आ टपके. उनके आते ही मुशायरा होली के रंग में डूब गया. आप पंकज जी के ब्लॉग पर भभ्भड़ जी की हज़ल को पूरी पढ़ सकते हैं यहाँ प्रस्तुत हैं बानगी के तौर पर उस हज़ल के कुछ शेर. होली चली गयी तो क्या हुआ उसी के खुमार में इसका लुत्फ़ लें. मैंने ये हज़ल पंकज जी के ब्लॉग से उस वक्त चुरा ली जब वो पिनक में थे. अब चुरा ली तो चुरा ली जब बड़े बड़े चोरों का इस देश की सरकार कुछ नहीं बिगाड़ पायी तो इस चोरी पर पंकज जी मेरा क्या बिगड़ लेंगे? इसे कहते हैं चोरी और सीना जोरी...फिलहाल हज़ल पढ़िए और दिल खोल कर हंसिये

खूबसूरत उसकी साली है अभी तक गाँव में
इसलिए कल्लू कसाई है अभी तक गाँव में
चों मियां फुक्कनतुम्हारे घर मेंकल वो कौन थी
तुम तो कहते थे कि, बीवी है अभी तक गाँव में
मायके जाना है तुझको, गर जो होली पर, तो जा
वो बहन तेरी फुफेरी है अभी तक गाँव में
आ रिये हो खां किधर से बहकी बहकी चाल है
क्या वो नखलऊ वाली नचनी है अभी तक गाँव में
आप होली पर शराफत इतनी क्यूँ दिखला रहे
आपकी क्या धर्म पत्नी है अभी तक गाँव में
हुस्न बेपरवाह सा है इश्क बेतरतीब सा
औ' मोहब्बत बेवकूफी है अभी तक गाँव में
आज कल देते हैं वो 'भभ्भड़' का परिचय इस तरह
ये पुराना एक पापी है अभी तक गाँव में
