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Channel: नीरज
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मुश्किल है ये जीवन, इसे आसान करेंगे

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इन दिनों शादियों का सीजन अपने चरम पर है , हर शहर गली मुहल्लों में शादियों कि धूम मची हुई है। जिनकी हो रही है वो बहुत खुश हैं जिनकी नहीं हुई वो होने कि आस लगाए बैठे हैं और जिनकी हो गयी है वो गा रहे हैं "सोचा था क्या क्या हो गया ...." 

इस मौके को ध्यान में रखते हुए मुम्बई निवासी मेरे प्रिय मित्र श्री सतीश शुक्ला "रकीब"जो गलती से शायर भी हैं ने सप्त पदीपर एक ग़ज़ल कह डाली है। ये ऐसा विषय है जिस पर शायद ही किसी शायर ने कलम चलाई हो।     

मेरी मानें और इस ग़ज़ल को रट कर जिस शादी में जाएँ वहीँ सुनाएँ और वाह वाही पाएं।


अंजान हैं, इक दूजे से पहचान करेंगे
मुश्किल है ये जीवन, इसे आसान करेंगे

खाई है क़सम साथ निभाने की हमेशा 
हम आज सरेआम ये ऐलान करेंगे 

इज़्ज़त हो बुज़ुर्गों की तो बच्चों को मिले नेह
इक दूजे के माँ-बाप का सम्मान करेंगे

हम त्याग, सदाचार, भरोसे की मदद से 
हर हाल में परिवार का उत्थान करेंगे 

आपस ही में रक्खेंगे फ़क़त, ख़ास वो रिश्ते 
हरगिज़ न किसी और का हम ध्यान करेंगे

हर धर्म निभाएंगे हम इक साथ है वादा
तन्हा न कोई आज से अभियान करेंगे

सुख-दुख हो, बुरा वक़्त हो, या कोई मुसीबत 
मिल बैठ के हम सबका समाधान करेंगे 

जीना है हक़ीक़त के धरातल पे ये जीवन 
सपनोँ से नहीं ख़ुद को परेशान करेंगे 

जन्नत को उतारेंगे यही मंत्र ज़मीं पर 
सब मिल के 'रक़ीब'इनका जो गुणगान करेंगे


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