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किताबों की दुनिया - 103 /1

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इस बार "किताबों की दुनिया"श्रृंखला में दो ऐसी बातें हो रहीं हैं जो इस से पहले मेरे ब्लॉग पर कभी नहीं हुई. अब आप पूछिए क्या ? पूछिए न ? आप पूछते नहीं तभी ये बातें होती हैं। चलिए हम बता देते हैं "सुनिए के ना सुनिए ...."

पहली तो ये कि इस पोस्ट के आने में दो महीने से भी ज्यादा का वक्त लग गया , इस विलम्ब का ठीकरा मैं चाहे सर्द मौसम , समय की कमी, अत्यधिक भ्रमण , उचित किताब का न मिलना आदि अनेक ऊटपटांग कारणों के सर पर फोड़ सकता हूँ लेकिन उस से हासिल क्या होगा ? आपने थोड़े पूछा है कि भाई "इतनी मुद्दत बाद मिले हो किन सोचों में गुम रहते हो "ये तो मैं अपनी मर्ज़ी से बता रहा हूँ और जब अपनी मर्ज़ी से बता रहा हूँ तो झूट क्यों बोलूं ? इस विलम्ब का कारण सिर्फ और सिर्फ आलस्य है।

दूसरी बात जो अधिक महत्वपूर्ण है वो ये कि इस बार हम किसी एक फूल जैसे शायर की किताब का जिक्र न करते हुए आपके लिए एक गुलदस्ता ले कर आये हैं जिसमें रंग रंग के फूल खिले हैं। इस गुलदस्ते का नाम है "खिड़की में ख्वाब "और इसे अलग अलग फूलों से सजाया है जनाब "आदिल रज़ा मंसूरी "साहब ने। इस गुलदस्ते की खास बात ये है कि इसमें शामिल फूल से शायर हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की सर जमीं से हैं ,सभी चालीस साल से कम उम्र के हैं और इन में से किसी भी शायर की किताब अभी तक मंज़रे आम पर नहीं आई है। इस किताब में कुल जमा 15 शायरों का कलाम दर्ज़ किया गया है अगर हर शायर का जिक्र हम एक ही पोस्ट में करेंगे तो ये पढ़ने वालों पर बहुत भारी पड़ेगा इसलिए हम इसे दो भाग में पोस्ट करेंगे। पहले भाग में 8 शायर और दूसरे में 7 शायरों जिक्र किया जायेगा।



तो चलिए शुरू करते हैं इस किताब के हवाले से शायरी का खुशनुमा सफर. सबसे पहले जिस शायर का कलाम आप पढ़ने जा रहें हैं वो हैं जनाब "तौक़ीर तक़ी "। आपका जन्म 6 जनवरी 1981 में नूरेवाला , पाकिस्तान में हुआ। मेरे कहने पे मत जाएँ आप खुद देखें ये किस पाये के शायर हैं। इस किताब में आपकी संकलित 5 ग़ज़लों में से कुछ के चंद अशआर पेश हैं :-

लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा 
आ! मिरी आँख से अदा हो जा 

ख़ुश्क पेड़ों को कटना पड़ता है 
अपने ही अश्क पी हरा हो जा 

संग बरसा रहा है शहर तो क्या 
तू भी यूँ हाथ उठा दुआ हो जा 

तौक़ीर साहब की एक और ग़ज़ल के चंद अशआर पहुँचाने का मन हो रहा है। ये नौजवानों की शायरी है जनाब जिनके सोच की परवाज़ मुल्क की सरहदें नहीं देखती।

रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं 
अश्क बच्चों की तरह घर से निकल जाते हैं 

सब्ज़ पेड़ों को पता तक नहीं चलता शायद 
ज़र्द पत्ते भरे मंज़र से निकल जाते हैं 

साहिली रेत में क्या ऐसी कशिश है कि गुहर 
सीप में बंद समंदर से निकल जाते हैं 

इस से पहले की हम अगले शायर का कलाम पेश करें आप जरा उनकी ग़ज़ल का ये एक शेर पढ़ते चलिए :-

दहलीज़ पर पड़ी हुई आँखें मिलीं मुझे 
मुद्दत के बाद लौट के जब अपने घर गया 

अब आ रहे हैं इस किताब के अगले शायर जनाब "अदनान बशीर "जो 6 सितम्बर 1982 को साईवाल ,पाकिस्तान में पैदा हुए और आजकल लाहौर में रहते हैं। इनके बारे में तो ज्यादा जानकारी हासिल नहीं हो पायी पर हाँ इनकी शायरी का अंदाज़ा उनकी ग़ज़लें पढ़ने से जरूर हो जाता है इस गुलदस्ते में बशीर साहब की 5 ग़ज़लें शामिल की गयी है , आईये पढ़ते हैं एक ग़ज़ल के चंद अशआर :-

तुम्हारी याद के परचम खुले हैं राहों में 
तुम्हारा जिक्र है पेड़ों में खानकाहों में 

शिकस्ता सहन के कोने में चारपाई पर 
तिरा मरीज़ तुझे सोचता है आहों में 

झुके दरख़्त से पूछा महकती डाली ने 
कभी गुलाब खिले हैं तुम्हारी बाहों में 

इस किताब के तीसरे शायर हैं 30 जून 1984 में संभल, उत्तर प्रदेश भारत में जन्मे जनाब "अमीर इमाम"साहब। अमीर अपनी पुख्ता शायरी की वजह से पूरे देश में अपना नाम रौशन कर चुके है। उनकी ग़ज़लें इंटरनेट पर उर्दू शायरी की सबसे बड़ी साइट "रेख़्ता "पर भी पढ़ी जा सकती हैं। आईये उनकी एक ग़ज़ल के इन अशआरों से रूबरू हुआ जाय :-

रहूँ बे सम्त फ़ज़ाओं में मुअल्लक़ कब तक 
मैं हूँ इक तीर जो अब अपना निशाना चाहूँ 
मुअल्लक़ = हवा में ठहरा हुआ 

अपने काँधे प'उठाऊँ मैं सितारे कितने 
रात हूँ अब किसी सूरज को बुलाना चाहूँ 

मसअला है कि भुलाने के तरीके सारे 
भूल जाता हूँ मैं जब तुझको भुलाना चाहूँ 

और अब पढ़ते हैं 5 सितम्बर 1985 को आजमगढ़ उत्तरप्रदेश भारत में जन्में शायर जनाब "सालिम 'सलीम'"साहब की ग़ज़ल के चंद अशआर। सालिम "रेख्ता"साइट से जुड़े हुए हैं और दिल्ली निवासी हैं। नए ग़ज़लकारों में सालिम साहब का नाम बहुत अदब से लिया जाता है।

क्या हो गया कि बैठ गई ख़ाक भी मिरी 
क्या बात है कि अपने ही ऊपर खड़ा हूँ मैं 

फैला हुआ है सामने सहरा -ऐ-बेकनार 
आँखों में अपनी ले के समंदर खड़ा हूँ मैं 

सोया हुआ है मुझमें कोई शख्स आज रात 
लगता है अपने जिस्म से बाहर खड़ा हूँ मैं 

15 जनवरी 1986 को आजमगढ़ उत्तर प्रदेश भारत में जन्में हमारे अगले शायर हैं जनाब "गौरव श्रीवास्तव 'मस्तो'" जिन्होंने अपनी तकनिकी शिक्षा लखनऊ में पूरी की। पूरे देश में अपनी विलक्षण प्रतिभा का डंका बजवाने वाले गौरव केवल कवितायेँ ग़ज़लें और नज़्में लिखने तक ही सिमित नहीं हैं , उन्होंने नए अंदाज़ में बहुत से नाटक भी लिखे हैं और उनमें अभिनय भी किया। फिल्म और मीडिया से सम्बंधित जानकारी देने के उद्देश्य से सन 2012 से उनके द्वारा चलाई जाने वाली संस्था "क्रो -क्रियेटिव "ने अल्प समय में ही अपनी पहचान स्थापित कर ली है। आईये उनकी ग़ज़ल के चंद अशआर पढ़ें जाएँ :-

फूल पर बैठा था भंवरा ध्यान में 
ध्यान से गहरा था उतरा ध्यान में 

उसकी आहट चूम कर ऐसा हुआ 
याद का इक फूल महका ध्यान में 

हाथ में सिगरेट मिरे घटती हुई 
और मैं बढ़ता हुआ सा ध्यान में 

उनकी एक छोटे बहर की खूबसूरत ग़ज़ल के दो चार शेर पढ़ें और उनकी प्रतिभा का अंदाज़ा लगाएं

मुद्दत बाद मिलेगा वो 
पूछ न बैठे कैसा हूँ 

गीली गीली आँखों वाला 
सूखा सूखा चेहरा हूँ 

सबके हाथों खर्च हुआ 
मैं क्या रुपया पैसा हूँ 

अब आपका परिचय करवाते हैं वसी गॉव महाराष्ट्र भारत में 17 जनवरी 1986 को जन्में युवा शायर जनाब "तस्नीफ़ हैदर " साहब की शायरी से जो आजकल दिल्ली निवासी हैं। उर्दू साइट "रेख्ता "में आपकी ग़ज़लें पढ़ी जा सकती हैं जिसमें इन्हें इस दौर का बहुत कामयाब उभरता शायर बताया गया है :-

आखिर आखिर तुझ से कोई बात कहनी थी मगर 
किसने सोचा था कि इतने फासले हो जायेंगे 

तू वफादारी के धोके में न रहना ए नदीम ! 
हम कहाँ अपने हुए हैं जो तिरे हो जायेंगे 

इक इसी अंदेशा -ऐ-दिल ने अकेला कर दिया 
प्यार होगा तो बहुत से मसअले हो जायेंगे 

नई नस्ल के सबसे प्रमुख शायरों में शामिल/उभरते हुए आलोचक जनाब महेंद्र कुमार 'सानी' जी जिनका जन्म 5 जून 1984 को जहांगीर गंज,फैज़ाबाद ,उत्तर प्रदेश में हुआ की ग़ज़ल के चंद शेर पढ़वाते हैं आपको , देखिये किस बला की सादगी से वो अपने ज़ज़्बात शायरी में उतारते हैं । सानी साहब आजकल चंडीगढ़ निवासी हैं।

उसे हमने कभी देखा नहीं है 
वो हमसे दूर है ऐसा नहीं है 

जिधर जाता हूँ दुनिया टोकती है 
इधर का रास्ता तेरा नहीं है 

सफर आज़ाद होने के लिए है 
मुझे मंज़िल का कुछ धोखा नहीं है 

हमारी इस पोस्ट के आखरी याने किताब के आठवें शायर हैं जनाब "अली ज़रयून " साहब जो 11 नवम्बर 1979 को फैसलाबाद पाकिस्तान में पैदा हुए। अली ने अपने लेखन का सफर सन 1991 याने मात्र 12 साल की उम्र से शुरू किया ।इनकी ग़ज़लों और नज़्मों की किताब शायद अब मंज़रे आम तक आ चुकी होगी क्यूंकि 2013 अंत तक वो प्रकाशन लिए तैयार थी। "अली"साहब का नाम अपनी शायरी के अलहदा अंदाज़ से पाकिस्तान और भारत में सम्मान से लिया जाता है। आईये अब उनकी ग़ज़ल के ये शेर पढ़वाते हैं आपको .

औरों के फ़लसफ़े में तिरा कुछ नहीं छुपा 
अपने जवाब के लिए खुद से सवाल कर 

ख़्वाहिश से जीतना है तो मत इससे जंग कर 
चख इस का ज़ायका इसे छू कर निढाल कर 

आया है प्रेम से तो मैं हाज़िर हूँ साहिबा 
ले मैं बिछा हुआ हूँ मुझे पायमाल कर 
पायमाल: पाँव के नीचे मसलना 

मैं अली की एक और ग़ज़ल के चंद अशआर आप तक पहुँचाने में अपने आप को रोक नहीं पा रहा, उम्मीद है आपको इन्हें पढ़ कर अच्छा लगेगा। छोटी बहर में कमाल के शेर कहें हैं अली साहब ने:-

न जाने चाँद ने क्या बात की है 
कि पानी दूर तक हँसता गया है 

भला हो दोस्त तेरा ! जो तुझ से 
हमारा देखना देखा गया है 

हमें इंसां नहीं कोई समझता 
तुम्हें तो फिर खुदा समझा गया है 

तुम्हें दिल के चले जाने प'क्या ग़म 
तुम्हारा कौन सा अपना गया है 

उम्मीद है आपको ये पोस्ट इसके शायर और उनके अशआर पसंद आये होंगे , हमें आये तभी तो आपसे शेयर कर रहे हैं अगर आप को भी पसंद आये हैं तो आप भी इसे अपने इष्ट मित्रों से शेयर करें और अगर आपको पसंद नहीं आये तो बराए मेहरबानी इस पोस्ट की बात को अपने तक ही सीमित रखें। जल्द ही मिलते हैं इस किताब के बाकी सात शायरों और उनके चुनिंदा कलाम के साथ इसी जगह,इंतज़ार कीजियेगा।

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