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Channel: नीरज
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आसमाँ किस सहारे होता है ?

एक ग़ज़ल यूँ ही बैठे -ठाले कौन कहता है छुप के होता है क़त्ल अब दिन दहाड़े होता है गर पता है तुम्हें तो बतलाओ इश्क कब क्यों किसी से होता है ढूंढते हो सदा वहाँ उसको जो हमेशा यहाँ पे होता है धड़कनें घुँघरुओं...

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किताबों की दुनिया - 96

जिस को भी अपने जिस्म में रहने को घर दिया उन्हीं के हाथ से मिरी मुठ्ठी में जान बंद जिन की ज़बान मेरी खमोशी ने खोल दी उन को गिला कि क्यों रही मेरी ज़बान बंद बाज़ार असलेहे का रहे रात भर खुला राशन की दिन ढले...

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किताबों की दुनिया - 97

गलियों गलियों दिन फैलाता हूँ लेकिन घर में बैठी शाम से डरता रहता हूँ पेड़ पे लिख्खा नाम तो अच्छा लगता है रेत पे लिख्खे नाम से डरता रहता हूँ बाहर के सन्नाटे अच्छे हैं लेकिन अंदर के कोहराम से डरता रहता हूँ...

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किताबों की दुनिया - 98

अक्सर मुझे ही शायरी की किताब ढूंढने के लिए इधर उधर भटकना पड़ता है , बहुत सी किताबें देखता हूँ ,खरीदता हूँ पढता हूँ और उन में से मुझे जो किताब पसंद आती है उसका जिक्र अपनी इस 'किताबों की दुनिया'श्रृंखला...

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किताबों की दुनिया - 99

नर्म लहज़े में दर्द का इज़हारगो दिसंबर में जून की बातें **** जुर्म था पर बड़े मज़े का था जिसको चाहा वो दूसरे का था **** ज़ेहन की झील में फिर याद ने कंकर फेंका और फिर छीन लिया चैन मिरे पानी का**** जब भी...

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किताबों की दुनिया - 100

मुंह पर मल कर सो रहे काली कीचड़ ज़िन्दगी जैसे यूँ धुल जाएँगी होने की रूसवाइयां गिर कर ठंडा हो गया हिलता हाथ फकीर का जेबों में ही रह गयीं सब की नेक कमाईयां फिरता हूँ बाज़ार में , रुक जाऊं लेता चलूँ उसकी...

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किताबों की दुनिया - 101

इंसान में हैवान , यहाँ भी है वहां भी अल्लाह निगहबान, यहाँ भी है वहां भी रहमान की कुदरत हो या भगवान की मूरत हर खेल का मैदान , यहाँ भी है वहां भी हिन्दू भी मज़े में हैं, मुसलमां भी मज़े में इन्सान परेशान ,...

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अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

दिपावली के शुभ अवसर पर पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर तरही मुशायरे का सफल आयोजन हुआ ,उसी में प्रस्तुत खाकसार की ग़ज़ल दुबक के ग़म मेरे जाने किधर को जाते हैं अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं हज़ार बार कहा यूँ...

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किताबों की दुनिया -102

उस पार से मुहब्बत आवाज़ दे रही है दरिया उफ़ान पर है दिल इम्तहान पर है ऊंचाइयों की हद पर जा कर ये ध्यान रखना अगला कदम तुम्हारा गहरी ढलान पर है 'राजेंद्र'से भले ही वाक़िफ़ न हो ज़माना ग़ज़लो का उसकी चर्चा सबकी...

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किताबों की दुनिया - 103 /1

इस बार "किताबों की दुनिया"श्रृंखला में दो ऐसी बातें हो रहीं हैं जो इस से पहले मेरे ब्लॉग पर कभी नहीं हुई. अब आप पूछिए क्या ? पूछिए न ? आप पूछते नहीं तभी ये बातें होती हैं। चलिए हम बता देते हैं "सुनिए...

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किताबों की दुनिया - 103 / 2

इसउम्मीदकेसाथकिआपनेइसश्रृंखलाकीपहलीकड़ीपढ़लीहोगीऔरअगरनहींभीपढ़ीतोभीये मानकर किपढ़ही लीहोगी ,हमअपनाअगला सफरजारीकरतेहैं। अगरआपनेपिछलीपोस्टपढ़ीहैतो,...

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इक रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो

आदरणीय पंकज जी के ब्लॉग पर हुई अद्भुत होली की तरही में भेजी खाकसार की ग़ज़ल। इसे जो पढ़े उसको भी जो न पढ़े उसको भी जो कमेंट करे उसको भी जो न करे उसको भी होली की शुभकामनाएं आँखों में तेरी अपने, कुछ ख़्वाब...

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छुपाये हुए हैं वही लोग खंज़र

बहुत अरसे बाद एक साधारण सी ग़ज़ल हुई हैनहीं है अरे ये बग़ावत नहीं है  हमें सर झुकाने की आदत नहीं है  छुपाये हुए हैं वही लोग खंज़र जो कहते किसी से अदावत नहीं है  करूँ क्या परों का अगर इनसे मुझको  फ़लक़...

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किताबों की दुनिया - 104

ठीक उस वक्त जब मैं किताबों की दुनिया श्रृंखला बंद करने की सोच रहा था मेरी नज़र पोस्ट के उन आंकड़ों पर पड़ी जिसमें बताया गया था कि फलां पोस्ट को कितने लोगों ने विजिट किया या यूँ कहें कि पढ़ा और किस जगह से।...

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किताबों की दुनिया -105

हो रही है शाम से साकिन घड़ी की सुइयां पाँव फैलाता है क्या एक एक पल फ़ुर्क़त की रात साकिन : रुक जाना : फ़ुर्क़त : जुदाई सर्द सर्द आहों से यूँ आंसू मिरे जमते गए हो गया तामीर इक मोती-महल फ़ुर्क़त की रात तामीर :...

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पालकी लिए कहार की

ज़बान पर सभी की बात है फ़क़त सवार की  कभी तो बात भी हो पालकी लिए कहार की  गुलों को तित्तलियों को किस तरह करेगा याद वो कि जिसको फ़िक्र रात दिन लगी हो रोजगार की  बिगड़ के जिसने पा लिया तमाम लुत्फ़े-ज़िन्दगी...

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किताबों की दुनिया -106

मैं समंदर हूँ मुझको नदी चाहिए ज़िन्दगी में मुझे भी ख़ुशी चाहिए तेरी खुशबू, तेरे जिस्म का नूर हो बंद कमरे में बस तीरगी चाहिए आशना थे जो उनका करम यूँ हुआ दिल कहे अब तो बस अजनबी चाहिए मेरे होंटों की नैया...

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किताबों की दुनिया -107/1

बन में जुगनू जग मग जग मग सपनों में तू जग मग जग मग जब से दिल में आग लगी है हर दम हर सू जग मग जग मग रैन अँधेरी यादें तेरी आंसू आंसू जग मग जग मग काले गेसू बादल बादल आँखें जादू जग मग जग मग मेरी ग़ज़लें गहरी...

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किताबों की दुनिया -107/2

हज़ारों मुश्किलें हैं दोस्तों से दूर रहने में मगर इक फ़ायदा है पीठ पर खंज़र नहीं लगता कहीं कच्चे फलों को संगबारी तोड़ लेती है कहीं फल सूख जाते हैं कोई पत्थर नहीं लगता हर इक बस्ती में उसके साथ अपनापन सा...

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किताबों की दुनिया - 91

"किताबों की दुनिया"श्रृंखला अब अपने शतक की और बढ़ रही है। मुझे लगता है कि जैसे अभी तो शुरुआत ही हुई है। न जाने कितने शायर और उनकी शायरी अभी जिक्र किये जाने योग्य है। मैं कितनी भी कोशिश करूँ पर फिर भी...

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