हमें सर झुकाने की आदत नहीं है
छुपाये हुए हैं वही लोग खंज़र
जो कहते किसी से अदावत नहीं है
करूँ क्या परों का अगर इनसे मुझको
फ़लक़ नापने की इज़ाज़त नहीं है
उठा कर गिराना गिरा कर मिटाना
हमारे यहाँ की रिवायत नहीं है
मिला कर निगाहें ,झुकाते जो गर्दन
वही कह रहे हैं मुहब्बत नहीं है
बहुत करली पहले ज़माने से हमने
हमें अब किसी से शिकायत नहीं है
करोगे घटाओं का क्या यार 'नीरज'
अगर भीग जाने की चाहत नहीं है