किताब मिली - शुक्रिया - 4
उम्र गुज़री रेत की तपते हुए सहराओं में क्या ख़बर थी रेत के नीचे छुपा दरिया भी है*बुराई सुनना और ख़ामोश रहना बुराई करने से ज़्यादा बुरा है*ऐसी ऐसी बातों पर हम प्यार की बाज़ी हारे हैं उनकी मस्जिद के...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया -5
मुतमइन था दिन के बिखराव से मैं लेकिन ये रात दाना दाना फिर अ'जब ढंग से पिरोती है मुझे*इश्क़ में मैं भी बहुत मुहतात था सब झूठ है और ये साबित कर गया कल रात का रोना मेरा मोहतात:सावधान*समझ में कुछ नहीं आता...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया - 6
सभी का हक़ है जंगल पे कहा खरगोश ने जब से तभी से शेर, चीते, लोमड़ी, बैठे मचनों पर*जिस घड़ी बाजू मेरे चप्पू नज़र आने लगेझील, सागर, ताल सब चुल्लू नज़र आने लगे हर पुलिस वाला अहिंसक हो गया अब देश मेंपांच सौ...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया - 7
तो क्यों रहबर के पीछे चल रहे हो अगर रहबर ने भटकाया बहुत है * मैं छोड़ कर चला आया हूं शहर में जिसको मुझे वो गांव का कच्चा मकान खींचता है * ज़ालिम को ज़ुल्म ढाने से मतलब है ढायेगा तुम चीखते रहो की...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया - 8
अपने दुश्मन तो हम खुद हैं हमसे हमको कौन बचाए*बेवजह जो दाद देते हैंकैक्टस को खाद देते हैं*इस नदी का जल कहीं भी अब लगा है फैलनेबांध कोई इस नदी पर अब बनाना चाहिए*लोग कुर्सी पर जो बैठे हैं ग़लत हैं...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया 9
कभी तो इनकी गर्माहट मिलेगी मेरे अपनों को जो रिश्ते बुन रहा हूं मैं मुहब्बत की सलाई से*उसूलों की तरफ़दारी का यह इनाआम है उधर सारा जमाना है, इधर तन्हा है हम*जहां से हम चले थे फिर वहीं आखिर में जा...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया - 10
तुम्हीं ने बनाया तुम्हीं ने मिटायामैं जो कुछ भी हूं बस इसी दरमियां हूं*उंगली तो उठाना है आसांपर कौन यहां कब कामिल हैकामिल: पूर्ण, पूरा*गुमराह हो गया तू भटक कर इधर-उधरइक राह ए इश्क़ भी है कभी इख़्तियार...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया - 11
यूं तो माना जाता है की ग़ज़ल का इतिहास सातवीं शताब्दी से शुरू हुआ लेकिन यदि हम अमीर खुसरो से इसकी शुरुआत मान लें तो भी ये अब तक 1200 साल पुराना हो चुका है। इन 1200 सालों में ग़ज़ल की ज़मीन पर हज़ारों...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया - 12
सूरज का साथ देने में नुक्सान ये हुआहम रात की नज़र में गुनाहगार हो गएइस बार मेरे पास मुहब्बत की ढाल थीइस बार उसके तीर भी बेकार हो गए*ख़याल ज़िद भी करें उनको टाल देता हूं मैं हल्का शेर ग़ज़ल से निकाल...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया - 13
लखनऊ'में देश के कद्दावर उर्दू शायर के घर की बैठक है, जिसमें आए दिन देश-विदेश के नामवर शोअरा आते रहते हैं, गुफ़्तगू करते हैं, अपनी शायरी सुनाते हैं। इन शोअरा से मिलने और उन्हें सुनने वालों का हर वक्त...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया -14
सच में,बहुत दुविधा पूर्ण स्थिति है साहब!!! दुविधा ये है कि क्या लिखूं ?जी हां मैं उस किताब पर क्या लिखूं जिस पर मुझसे अधिक समझदार लोग मुझसे पहले बहुत बेहतरीन लिख चुके हैं। मेरा मानना है कि जो कुछ लिखा...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया - 15
लगभग तीन-चार साल पुरानी बात होगी, शाम का समय था जब अमेरिका से श्री अनूप भार्गव जी का फोन आया। अनूप जी बिट्स पिलानी से केमिकल इंजीनियरिंग और आईआईटी दिल्ली से सिस्टम एवं मैनेजमेंट का कोर्स किए हुए हैं और...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया -16
लगाया था किसी ने आंख से काजल छुटाकर जो मेरे बचपन के अल्बम में वो टीका मुस्कुराता है दिया था उनको हामिद ने कभी लाकर जो मेले से अमीना की रसोई में वो चिमटा मुस्कुराता है किताबों से निकलकर तितलियां ग़ज़लें...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया - 17
ऐसे तन मन पावन रखना दिल में ही वृंदावन रखना ठगिनी माया दाग लगाती उजाला अपना दामन रखना*किसी को भी कभी कमतर न आंकें आज ये कह दो समुंदर सूख जाता गर उसे दरिया नहीं मिलता*सुकूं पाया उसे यूं याद करने में थके...
View Articleकिताब मिली -शुक्रिया -18
घर जब धीरे-धीरे मरने लगते हैं दीवारों पर अक्स उभरने लगते हैं *मिली है अहमियत सांपों को इतनी सपेरा विष उगलना चाहता है *सिर्फ हंस कर नहीं दिखाओ मुझे जी रहे हो यकीं दिलाओ मुझे *दरिया अपनी गहराई पर फक़्र न...
View Articleकिताब मिली -शुक्रिया - 19
ऐ हमसफ़र ये याद रख, तेरे बिना यह ज़िंदगी कि सिर्फ़ धड़कनों की खींच-तान है, थकान है रहे जब उसके दिल में हम, तो हम को ये पता चला वो बंद खिड़कियों का इक मकान है, थकान है*अगर जो देना ही चाहते हो तो साथ...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया - 20
तू है सूरज तुझे मालूम कहां रात का दुख तू किसी रोज़ मेरे घर में उतर शाम के बाद लौट आए ना किसी रोज़ वो आवारा मिज़ाज खोल रखते हैं इसी आस पे दर शाम के बाद*हम इर्द-गिर्द के मौसम से जब भी घबराए तेरे ख़्याल...
View Articleकिताब मिली --शुक्रिया - 21
जो तू नहीं तो ये वहम-ओ-गुमान किसका है ये सोते जागते दिन रात ध्यान किसका है कहां खुली है किसी पे ये वुसअत-ए -सहारा सितारे किसके हैं ये आसमान किसका है वुसअत ए सहारा: रेगिस्तान का फैलाव * वही इक शेर मुझ...
View Articleकिताब मिली - शुक्रिया - 22
दुखों से दाँत -काटी दोस्ती जब से हुई मेरी ख़ुशी आए न आए जिंदगी खुशियां मनाती है * किसी की ऊंचे उठने में कई पाबंदियां हैं किसी के नीचे गिरने की कोई भी हद नहीं है युगों से जिसकी गाथाएं सुनी जाती रही हैं...
View Article