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Channel: नीरज
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किताबों की दुनिया - 243

डर कर घरों की धूप से कुछ गांव के बुजुर्ग डाले हुए सरों पे हैं पीपल की ओढ़नीपहले तो तार-तार किया पैराहन तमाम फिर दाग दार कर गए पागल की ओढ़नी*समझौता तीरगी से कभी भी नहीं किया बिजली चली गई तो मज़ा धूप का...

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किताबों की दुनिया - 244

मौसम के घर ये कौनसे मेहमान आ गये देहलीज़ पर उतारी हैं पत्तों ने चप्पलें  कितनी नमी है सूनी हवेली में हर तरफ़ आया था कौन टांकने अश्क़ों की छागलें   *पत्थरों के दौर को जुग बीते लेकिन क्या कहेंगे जो ज़माना...

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किताबों की दुनिया - 245

यह तब्सिरा शिकायतें बेकार हैं मियांँ ये मान लो कि खेलती है खेल जिंदगी*मंदिर मस्जिद के सपनों में अक्सर थक कर चूर हुई जब बच्चों को हंसते देखा आंखों ने आराम किया पापों के साए में खुद को यूंँ जीवित रखते...

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किताबों की दुनिया - 246

दूर ही से चमक रहे हैं बदनसारे कपड़े कुतर गया सूरजपानियों में चिताएँ जलने लगींनद्दियों में उतर गया सूरजसाजिशें ऐसी की चरागों नेवक्त से पहले मर गया सूरज*दुनिया है जंगल का सफरलक्ष्मण जैसा भाई देसोने का...

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किताबों की दुनिया - 247

ये मैं हूंँ और ये मैं हूंँ ये एक मैं ही हूंँ मगर ख़लीज सी इक दरमियान देखता हूंँ ख़लीज: अंतर खाड़ीकहांँ-कहाँ नई ता'मीर की ज़रूरत है सो तेरी आंँखों से अपना जहान देखता हूंँ ता'मीर :निर्माण मेरा चराग़-ए-बदन...

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किताबों की दुनिया - 248

मेरा क़द मेरे बाप से ऊंचा निकला और मेरी मांँ जीत गई*ऐ जीवन के प्यारे दुख मेरे अंदर दिया जलाना बुझ मत जाना*मेरे बच्चे तेरी आंँखें, तेरे लब देखकर मैं सोचती हूंँ ये दुनिया इस बला की ख़ूबसूरत है तो फिर क्यों...

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किताबों की दुनिया - 249

हर ख़ुशी क़दम चूमे कायनात की उसकेरास आ गईं जिसको सुहबतें फ़क़ीरों कीसूर, जायसी, तुलसी और कबीर, ख़ुसरो कोबेबसी से तकती हैं दौलतें अमीरों कीजिस्म की सजावट में रह गए उलझ कर जोरूह तक नहीं पहुंची फ़िक्र उन हक़ीरों...

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किताबों की दुनिया - 250

इश्क़ का राग जो गाना हो, मैं उर्दू बोलूंँ किसी रूठे को मनाना हो, मैं उर्दू बोलूंँ बात नफरत की हो करनी तो ज़बानें हैं कई जब मुझे प्यार जताना हो, मैं उर्दू बोलूंँ उर्दू ज़बान से बेइंतहा मुहब्बत करने वाले...

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किताबों की दुनिया -251

क्या पूछो हो ! सन्यासी की दौलत को एक कमंडल इक मृगछाला जय सियाराम खुले किवाड़ों सोए तेरे दीवाने कैसी साँकल ! किसका ताला, जय सियाराम*कोई बुरा भी कहे, तो जवाब क्या देना !ये मान लीजिए, ऊंँचा सुनाई देता है...

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किताबों की दुनिया -252

मोहब्बत बोझ बन कर ही भले रहती हो काँधों परमगर यह बोझ हटता है तो काँधें टूट जाते हैं बहुत दिन मस्लिहत की क़ैद में रहते नहीं जज़्बे मोहब्बत जब सदा देती है पिंजरे टूट जाते हैंमस्लिहत: लाभ-हानि सोचकर निर्णय...

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किताबों की दुनिया - 253

गर हो तेरा इशारा सेराब हो ये सहरा पलकों प एक आँसू कब से मचल रहा है *बुलंदियों के मुसाफ़िर तुझे खबर भी है ये रास्ते में है आगे ढलान किसके लिएइसी ज़मीन प जब तेरा आबो- दाना है फिर आसमान में ऊँची उड़ान...

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किताबों की दुनिया - 228

फटी पुरानी सियाह रात की रिदा के लिए अभी सुई से मुझे रोशनी गुज़ारनी है तमाम उम्र जुदाई की साअते नाजुककभी निबाहनी है और कभी गुज़ारनी है साअते : समय तो क्या यह तय है कि वो फैसला न बदलेगा तो क्या यह कै़द...

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किताबों की दुनिया - 253

गर हो तेरा इशारा सेराब हो ये सहरा पलकों प एक आँसू कब से मचल रहा है *बुलंदियों के मुसाफ़िर तुझे खबर भी है ये रास्ते में है आगे ढलान किसके लिएइसी ज़मीन प जब तेरा आबो- दाना है फिर आसमान में ऊँची उड़ान...

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किताबों की दुनिया - 254

शबे ग़म की सहर नहीं होती हो भी तो मेरे घर नहीं होती हल्क़ से घूंट भर जहां उतरी तौबा फिर उम्र भर नहीं होती वस्ल में ये बला भी होती है रात पिछले पहर नहीं होती*न सजदागह न कोई जलवागह बची हमसे वो दिल में थे...

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किताबों की दुनिया - 255

देख लेंगे दुश्मनों की दोस्ती दोस्तों की दुश्मनी तो आम है जिस ने राहत की तमन्ना छोड़ दी बस उसे आराम ही आराम है राहत: सुख*इस  क़दर दिलकश कहां होती है फ़रज़ाने की बात बात में करती है पैदा बात दीवाने की...

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किताबों की दुनिया - 256

जो भी कहूँगा सच कहूँगा ये झूठ तो आम चल रहा है हम तुम हैं जो चल रहे हैं तह में दरिया का तो नाम चल रहा है *वो सामने था तो कम कम दिखाई देता था चला गया तो बराबर दिखाई देने लगा वो इस तरह से मुझे देखते हुए...

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किताबों की दुनिया - 257

तू वही नींद जो पूरी न हुई हो शब-भर मैं वही ख़्वाब कि जो ठीक से टूटा भी न हो*मेरी आंखे न देखो तुमको नींद आए तो सो जाओ ये हंगामा तो इन आँखों में शब भर होने वाला है*झिझक रहे थे बहुत ज़िंदगी के आगे हम सो...

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किताब मिली - शुक्रिया -1

हुआ यूं कि जैसे ही मैं कल अपनी अलमारी में रखी ग़ज़लों की किताबों पर लिखने की बाबत फेसबुक पर पोस्ट डाली वैसे ही आप सबको लगा कि मैं फिर से "किताबों की दुनिया"श्रृंखला शुरू कर रहा हूं, जबकि मेरा आशय ऐसा...

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किताब मिली - शुक्रिया- 2

(ये पोस्ट फेसबुक के मापदंडों के अनुसार लंबी की श्रेणी में आएगी। अत: मेरा अनुरोध है कि इसे सिर्फ़ वही लोग पढ़े जिनके पास समय है और जो शायरी से "बेपनाह"मोहब्बत करते हैं। "बेपनाह"शब्द पर गौर करें मीलार्ड...

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किताब मिली - शुक्रिया - 3

तू चाहता है जो मंजिल की दीद सांकल खोल सदाएं देने लगी है उमीद सांकल खोल  बड़े मज़े में उदासी है बंद कमरे में  मगर हंसी तो हुई है शहीद सांकल खोल * बाद इसके चराग़ लौ देगा पहले इक लौ चराग़ तक पहुंचे * यार...

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