तुम समुन्दर हो न समझोगे मिरी मजबूरियां
एक दरिया क्या करे पानी उतर जाने के बाद
आएगी चेहरे पे रौनक़ खिल उठेगी ज़िन्दगी
ग़म के आईने में थोड़ा सज-सँवर जाने के बाद
मुन्तज़िर आँखों में भर जाती है किरनों की चमक
सुब्ह बन जाती है हर शब् मेरे घर आने के बाद
भारत के पूर्वी प्रदेश बिहार के पश्चिम भाग में गंगा नदी के तट पर स्थित एक ऐतिहासिक शहर है। नाम है बक्सर जो पटना से ये ही कोई 75 कि.मी. दूर होगा। इसी बक्सर में ऋषि विश्वामित्र का आश्रम था और यहीं राम- लक्ष्मण ने उनसे शिक्षण-प्रशिक्षण लिया। यहीं पत्थर में परिवर्तित अहिल्या का राम ने उद्धार किया था। इसी जगह का एक शायर है जो पत्थर की तरह के मृतप्राय शब्दों को अपनी विलक्षण कलम से छू कर प्राणवान कर देता है। अपने में मस्त इस अद्भुत शायर को बहुत कम लोग शायद जानते हों। उनसे मेरा परिचय भी इस किताब से हुआ है जिसकी बात हम आज करेंगे।
मिरे नसीब में लिक्खी नहीं है तन्हाई
जो ढूढ़ना तो हज़ारों में ढूंढ़ना मुझको
मैं दुश्मनों के बहुत ही क़रीब रहता हूँ
समझ के सोच के यारों में ढूंढना मुझको
फ़क़त गुलों की हिफ़ाज़त का काम ही है मिरा
चमन में जाना तो ख़ारों में ढूंढना मुझको
सही कहा है इस शायर ने ,इन्हें ढूंढना आसान काम नहीं। जिस जगह आज के बहुत से शायर आसानी से मिल जाते हैं वहां ये हज़रत नहीं मिलते। आज के युग का ये शायर न किसी धड़े से जुड़ा है न फेसबुक या ट्वीटर से न कोई इसकी बहुत बड़ी फैन फॉलोइंग नज़र आती है और न किसी अखबार पत्रिका में चर्चा। लेकिन फिर भी बिहार का शायद ही कोई सच्चा साहित्य प्रेमी होगा जिसने इनका नाम न सुना हो और इनके अपने क्षेत्र में तो इनका नाम बहुत ही आदर से लिया जाता है. मेरा इशारा हमारे आज के शायर जनाब "
कुमार नयन"से है जिनकी किताब '
दयारे-हयात में"की बात हम करेंगे।
इतने थे जब क़रीब तो फिर क्यों मिरे रफ़ीक़
तुमको तलाशने में ज़माना लगा मुझे
हर सू यहाँ पे दर्द के ही फूल हैं खिले
रुकने का इसलिए ये ठिकाना लगा मुझे
मेरी सलामती की दुआ दुश्मनों ने की
सचमुच ये उनका मुझको हराना लगा मुझे
बढ़ी हुई दाढ़ी उलझे रूखे बाल कबीर सी सोच और फक्कड़ तबियत के मालिक 'कुमार नयन'आपको बक्सर की सड़कें पैदल नापते कभी भी दिखाई दे सकते हैं। 5 जनवरी 1955 को डुमरांव में कुमार नयन का जन्म हुआ। उनके पिता गोपाल जी केशरी थे। दादा जी सीताराम केशरी जिनको पूरा बिहार स्वतंत्रता सेनानी के नाम से जानता था। नयन जी ने दसवीं तक की पढ़ाई हाई स्कूल डुमरांव से की। 1969 में इंटर पास किया। डीके कालेज से बीए, फिर एलएलबी व अंतत: हिन्दी से एमए किया। इस बीच 1975 में ही वे डुमरांव से बक्सर आ गए। यहां शहर में उनकी ननिहाल थी। यहीं बस गए।
सबकुछ है तेरे पास मेरे पास कुछ नहीं
अब तेरे-मेरे बीच कोई फ़ासला नहीं
मैं जी रहा हूँ कम नहीं इतना मिरे लिए
सर पर मिरे ख़ुदा क़सम कोई ख़ुदा नहीं
मुन्सिफ़ बने हो तुम मिरे तो सोच लो ज़रा
इन्साफ़ मांगने चला हूँ फ़ैसला नहीं
आज बक्सर शहर की दलित बस्ती खलासी मुहल्ला में इनका आशियाना है। जीवट इतने हैं कि तब से लेकर आजतक शहर की सड़कों पर पैदल चलते आ रहें हैं। खुद के पास साइकल भी नहीं। नतीजा अब शहर की सड़के भी इनको पहचानने लगी हैं। इस तरह का इंसान खुद्दार किस्म का होता है और ऐसे इंसान की सोच भी सबसे अलग होती है ,ये अपने लिए नहीं समाज के लिए काम करता है। एमए व एलएलबी करने के बाद भी उन्होंने कैरियर के रूप में साहित्यक व सामाजिक क्षेत्र को चुना। 1987 में भोज थियेटर लोक रंगमंच की स्थापना की। इसके माध्यम से उन्होंने भिखारी ठाकुर के नाटकों एवं अन्य लोक संस्कृतियों का मंचन कर अलग ही पहचान बना ली।
दूर तक मंज़िल न कोई मरहला इस राह में
मील का पत्थर नहीं फिर भी सफ़र अच्छा लगा
आपने भी फाड़ डाली अपनी सारी अर्ज़ियाँ
आप भी खुद्दार हैं यह जान कर अच्छा लगा
हैं वो ही दीवारो-दर आँगन वो ही बिस्तर वो ही
शख़्स इक आया तो मुद्दत बाद घर अच्छा लगा
पढाई के बाद 1981 में कोलकत्ता से प्रकाशित होने वाले रविवार के लिए लिखना प्रारंभ किया। इस बीच अंग्रेजी की पत्रिका ब्लिट्ज में लिखना प्रारंभ किया। 1986 में नवभारत टाइम्स से जुड़े, इस क्रम में टाइम्स आफ इंडिया के लिए भी लिखते रहे। यह सफर 1991 में थम गया। लंबे समय अंतराल के बाद वर्ष 2004 में झारखंड के प्रमुख दैनिक समाचारपत्र प्रभात खबर में सीनियर सब एडीटर के तौर पर काम करना प्रारंभ किया। यह सफर भी साल दो साल से अधिक नहीं चला। इसके बाद 08 से 09 के बीच युद्धरत आम आदमी विशेषांक में काम किया।
मिले कभी भी तो करता है बात फूलों की
वो एक शख्स जो पत्थर के घर में रहता है
निकल न पाऊं कभी उसकी सोच से बाहर
कोई ख़याल हो उसकी डगर में रहता है
तुम्हीं कहो न कि मैं क्या करूँ तुम्हारे लिए
मिरा तो दिल ये अगर और मगर में रहता है
1991 में पत्रकारिता से साथ छूटा तो मुंबई चले गए। वहां दो भोजपुरी फिल्मों के लिए गीत लिखे। एक के लिए डायलाग व पूरी कहानी लिखी। 93 में हमेशा के लिए माया नगरी को छोड़ दिया। शहर में सामाजिकी जीवन से जुड़े। 94-95 में अंजोर के सेक्रेटरी बने। 1999 में त्यागपत्र दे दिया। जरुरतें परेशान करती रहीं। वकालत शुरु कर दी। हाई कोर्ट के वरीय अधिवक्ता व्यासमुनी सिंह की नजर उनपर पड़ी। वे उन्हें पटना ले गए। 2002 में उनका निधन हो गया। तब नयन जी ने वकालत भी छोड़ दी.
"नयन"जी की एक ग़ज़ल के ये शेर लगता है उन्होंने अपने पर ही कहे हैं :
अजीब शख़्स है वो जो तबाह-हाल रहा
तमाम उम्र मगर फिर भी बा-कमाल रहा
मिला न वक़्त कभी ख़ुद से मिलने का ही मुझे
कि सामने तो मिरे आपका सवाल रहा
मुझे मुआफ़ करो ऐ मिरे अज़ीज़ ग़मों
मैं सोचने में कोई शे'र बेख़याल रहा
हालात ऐसे बने की नयन कलम से जुदा नहीं हो सके। रास्ते कई बदले पर कलम खींच कर अपने पास ले आती रही। यह बात अब उनको भी समझ में आने लगी। जीवन के सफर में जो लिखा था। उसे सहेजने लगे। 1993 में पहला कविता संग्रह पांव कटे बिम्ब प्रकाशित हुआ था। उसने रफ्तार पकड़ी। अब तक कुल पांच पुस्तकें आई हैं। जिनमें आग बरसाते हैं शजर (गजल संग्रह), दयारे हयात (गजल संग्रह), एहसास आदि प्रमुख हैं। उनकी अगली रचना "सोंचती हैं औरतें", प्रकाशित होने वाली है।
वर्ष 2017 फरवरी को पटना में आयोजित पुस्तक मेले में उनकी गजल की पुस्तक "दयारे हयात"सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तक रही।
बहुत से लोग मुझसे पूछते हैं
वतन में अपने ही अब हम नहीं क्या
ख़ुशी से आज भी क्यों जी रहा हूँ
मुझे ग़म होने का कुछ ग़म नहीं क्या
लहू क्यों खौलता रहता है हर दम
सुकूँ का अब कोई मौसम नहीं क्या
कुमार नयन साहब को ढेरों सम्मान और पुरूस्कार मिले हैं जिनमें बिहार भोजपुरी अकादमी सम्मान , कथा हंस पुरूस्कार, निराला सम्मान ,और ग़ालिब सम्मान उल्लेखनीय हैं।पिछले साल याने 2017 में , पटना में 30 मार्च को राजभाषा की ओर से शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी की उपस्थिति में शीर्ष कवि केदारनाथ सिंह ने उन्हें
राष्ट्रकवि दिनकर पुरस्कारप्रदान किया. साथ ही कुमार नयन को पुरस्कार की राशि एक लाख रुपए भी प्रदान की गयी। कुमार नयन साहब की शायरी में कई रंग हैं जिन्हें इस पोस्ट में समाया नहीं जा सकता , मैंने सिर्फ उनकी चंद ग़ज़लों के अशआर ही आप तक पहुंचाए हैं ,
मिरे घर में कहानी है अभी तक
मिरे बच्चों की नानी है अभी तक
घड़ा मिटटी का पत्तों की चटाई
बुजुर्गों की निशानी है अभी तक
कोई गिरधर यहाँ हो या नहीं हो
मगर मीरा दीवानी है अभी तक
वहां उम्मीद कैसे छोड़ दूँ मैं
जहाँ आँखों में पानी है अभी तक
राधाकृष्ण प्रकाशन 7 /31 अंसारी मार्ग ,दरियागंज नै दिल्ली से प्रकाशित इस किताब में नयन जी की लगभग 111 ग़ज़लें संग्रहित हैं। इस किताब की प्राप्ति के लिए आप राधाकृष्ण प्रकाशन की वेब साईट
www.radhakrishnaprkashan.com पर जा कर इस किताब का आर्डर कर सकते या फिर आप कुमार नयन साहब को इस पते पर ई-मेल
kumarnayan.bxr@gmail.com करें या फिर उन्हें
9430271604पर फोन कर के बधाई देते हुए पुस्तक प्राप्ति का रास्ता पूछें।
आखिर में चलते चलते आईये नयन जी की एक और ग़ज़ल के शेर आपको पढ़वाता हूँ :
मिरा दुश्मन लगा मुझसे भी बेहतर
मैं उसके दिल के जब अंदर गया तो
मिरे बच्चों से होंगी मेरी बातें
किसी दिन वक़्त पर मैं घर गया तो
मैं ख़ाली ट्यूब हूँ पहिये का लेकिन
हवा बनकर तू मुझमें भर गया तो
मन कर रहा है कि एक और ग़ज़ल के शेर आप तक पहुंचा दूँ ,मुझे बहुत अच्छे लगे उम्मीद है आप भी इन्हें पढ़ कर वाह करेंगे , देखिये न छोटी बहर में नयन जी ने क्या हुनर दिखाया है :
वहां पाखण्ड चल नहीं सकता
जहाँ कोई कबीर ज़िंदा है
इक पियादा हो जब तलक ज़िंदा
तो समझना वज़ीर ज़िंदा है
तेरी दुनिया में मर गयी होगी
मेरी दुनिया में हीर ज़िंदा है