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किताबों की दुनिया -148

आज ग़ज़ल बहुत सी भारतीय भाषाओँ में कही जा रही है लेकिन जिस भाषा के साथ ग़ज़ल का जिक्र हमेशा आएगा वो है "उर्दू'. शायरी पर बात करने से पहले आईये उसे पढ़ते हैं जो हमारे आज के शायर ने इस किताब की भूमिका में एक...

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किताबों की दुनिया -149

घिरती हुई है बाढ़ भी आँखों के गाँव में फैला हुआ चारों तरफ़ सूखा भी देखिये ये धूल के बादल भी छुएँ आसमान को मिटटी में ये रुला हुआ सोना भी देखिये बेमौसमी खिले हुए 'सुमन'भी हैं कई बेमौसमी ये रूप पिघलता भी...

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किताबों की दुनिया -150

तुमसे पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्तनशीं था उसको भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यकीं था ये उस शायर का शेर है जिसके इंतकाल के 15 साल बाद याने 2008 की फरवरी के अंतिम सप्ताह में मुशर्रफ़ समर्थक पाकिस्तान...

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किताबों की दुनिया -151

जो लोग बनारस में रहते हैं वो बनारस का गुणगान क्यों करते हैं ,ये बात अभी हाल ही में संपन्न बनारस यात्रा के बाद ही पता लगी। हालाँकि बनारस में हमारा सामना भीड़, धूल ,गर्मी, उमस ,पसीना ,गन्दगी और प्रदूषण...

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किताबों की दुनिया -152

अक्सर देखा गया है कि शायर सामाजिक जिम्मेवारियों को दरकिनार कर इश्क-मुश्क की रंगीन मिज़ाज़ी शायरी करते हुए मदमस्तीयों और मौजों में अपनी ज़िन्दगी तमाम कर देते हैं और खो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि इश्क-मुश्क...

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किताबों की दुनिया -153

वो कहते हैं रंजिश की बातें भुला दें मुहब्बत करें, खुश रहें, मुस्कुरा दें जवानी हो गर जाविदानी तो या रबतिरि सादा दुनिया को जन्नत बना दें जाविदानी =अनश्वर शबे-वस्ल की बेखुदी छा रही है कहो तो सितारों की...

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किताबों की दुनिया -154

मौसम है बहारों का मगर खानये दिल में सूखे हुए इक पेड़ की तस्वीर लगी है अरमाँ का शजर सूख चला ज़र्द हैं पत्ते लगता है कि इस पर भी अमर बेल चढ़ी है हम शहरे-तमन्ना में उसे ढूंढ रहे हैं आहट है कि तन्हाई के ज़ीने...

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किताबों की दुनिया -155

घर तो हमारा शोलों के नरग़े में आ गयालेकिन तमाम शहर उजाले में आ गयानरग़े = घेरेयह भी रहा है कूच-ए-जानां में अपना रंगआहट हुई तो चाँद दरीचे में आ गयाकूच-ए-जानां=महबूब की गली , दरीचे =खिड़कीकुछ देर तक तो उस...

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किताबों की दुनिया - 156

जो पसीने से इबारत पे यकीं रखता है वो भला कैसे हथेली पे लिखा याद रखे जिसके सीने से निकलता है निरंतर लावा मैं दिया हूँ उसी मिटटी का हवा याद रखे अब मुहब्बत भी गुनाहों में गिनी जाती है हर गुनहगार यहाँ अपनी...

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किताबों की दुनिया - 157

नदी, झरने, किताबें, चाँद, तारे और तन्हाई वो मुझसे दूर हो कर हर किसी के पास जा बैठा मैं जब घबरा गया हर रोज़ के सौ बार मरने से उठा शिद्दत से और फिर ज़िन्दगी के पास जा बैठा ये मेरी बेख़ुदी है या है उसके...

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किताबों की दुनिया -158

इबादतों के तरफ़दार बच के चलते हैं किसी फ़क़ीर की राहों में गुल बिछा कर देख ये आदमी है ,रिवाजों में घुल के रहता है न हो यकीं तो समंदर से बूँद उठा कर देख तनाव सर पे चढ़ा हो तो बचपने में उतर खुद अपने हाथों से...

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किताबों की दुनिया -159

कल रात गुदगुदा गई यादों की उँगलियाँदिल पे मेरे वो भरती रही नर्म चुटकियाँझोंका हवा का आयेगा कर जायेगा उदासइस डर से खोलते नहीं यादों की खिड़कियाँमैं सोचता हूँ तुझको ही सोचा करूँ मगरइक शै पे कैसे ठहरें...

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किताबों की दुनिया -160

(ये मेरे ब्लॉग की चारसौ वीं (400th) पोस्ट है) ****अपना हर अंदाज़ आँखों को तरोताज़ा लगाकितने दिन के बाद मुझको आईना अच्छा लगासारा आराईश का सामां मेज़ पर सोता रहाऔर चेहरा जगमगाता जागता, हँसता लगाआराईश...

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किताबों की दुनिया -161

माफ़ कर दो जो ख़ता मुझसे हुई है अब तक क्या ज़रूरी है उसे हर्फ़े बयानी कह दूँ ये ख़ता मुझसे हुई उसको जो चाहा मैंने जो ख़ता उसने करी वो मेहरबानी कह दूँ ये सबब है मेरे जीने का तो बरसों 'सागर' आज उन यादों को...

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किताबों की दुनिया -162

तुम समुन्दर हो न समझोगे मिरी मजबूरियां एक दरिया क्या करे पानी उतर जाने के बाद आएगी चेहरे पे रौनक़ खिल उठेगी ज़िन्दगी ग़म के आईने में थोड़ा सज-सँवर जाने के बाद मुन्तज़िर आँखों में भर जाती है किरनों की चमक...

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किताबों की दुनिया -163

ग़ज़ल ऐसी कि ग़ज़लें सिर धुनें बेसाख़्ता उसपे कि जब कहना नयी कहना हरी ताज़ी ग़ज़ल कहना ग़ज़ल कहनी है बस इस वास्ते कहना नहीं ग़ज़लेंकोई इक बात कहनी हो अगर साथी ग़ज़ल कहना जुबां ऐसी कि जैसे बोलते हैं बोलने वाले अदा...

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किताबों कीदुनिया -164

छल, कपट, पाखंड का कुछ झूठे आभासों का है सारा जीवन चन्द चालों और कुछ पासों का है ये मोहब्बत के तकाज़े दोस्ती रिश्तों की डोर वहम है सारा फ़क़त, ये खेल विश्वासों का है तैरती इक लाश को देखा तो दिल ने ये कहा...

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किताबों की दुनिया -165

भूलना मैं चाहता तो किस क़दर आसान था याद रखने में तुझे, ये सारी दुश्वारी हुई तू अगर रूठा रहा मुझसे तो हैरत क्या करूँ इस जहाँ में किससे तेरी नाज़ बरदारी हुई सोचता हूँ एक पल में हो गया कैसे तमाम वो सफ़र...

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किताबों की दुनिया - 166

किसी तालाब की भी हैसियत कुछ कम नहीं होतीसमंदर में कमल के फूल पैदा हो नहीं सकते उसूलों में कभी होता है इतना वज़्न जिनको हम ज़ियादा देर काँधों पर मुसल्सल ढो नहीं सकते बड़ा होने पे ये दिक्कत हमारे सामने आयी...

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किताबों की दुनिया -167

धूप का जंगल, नंगे पाँवों, इक बंजारा करता क्या रेत के दरिया, रेत के झरने, प्यास का मारा करता क्या सब उसके आँगन में अपनी राम कहानी कहते थे बोल नहीं सकता था कुछ भी घर चौबारा करता क्या टूट गये जब बंधन सारे...

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