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Channel: नीरज
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किताबों की दुनिया - 225

ये कोई सन 1960 के आसपास की बात होगी बीकानेर के राजकीय पाबू पाठशाला, जो आठवीं याने मिडल क्लास तक ही थी, में रोज की तरह असेम्बली की घंटी बज चुकी थी। एक मेज पर हारमोनियम और दूसरी पर तबला रखा था। स्कूल...

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किताबों की दुनिया - 226

सुख़न-सराई कोई सहल काम थोड़ी है ये लोग किस लिए जंजाल में पड़े हुए हैं *किसी किसी को है तरबीयते-सुख़नसाज़ी कोई कोई है जो ताज़ा लकीर खींचता है *शेर वो लिख्खो जो पहले कहीं मौजूद न हो ख़्वाब देखो तो ज़माने से अलग...

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किताबों की दुनिया - 227

जब कलम ने तालियों की चाह में लिक्खी ग़ज़ल तब किताबों से निकलकर मीर ने रोका मुझे चंद सिक्कों की खनक पर डगमगाया जब कभी पर्स में रक्खी तेरी तस्वीर ने रोका मुझे बोलते लब रोक ना पाए मेरे क़दमों को तब मौन आंखों...

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किताबों की दुनिया - 228

फटी पुरानी सियाह रात की रिदा के लिए अभी सुई से मुझे रोशनी गुज़ारनी है तमाम उम्र जुदाई की साअते नाजुककभी निबाहनी है और कभी गुज़ारनी है साअते : समय तो क्या यह तय है कि वो फैसला न बदलेगा तो क्या यह कै़द...

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किताबों की दुनिया - 229

ज़िन्दगी तेरे पास क्या है बता मौत के पास तो बहाने हैं *जिस्म मुजरिम है और रूह गवाह ज़िंदगी इक बयान है प्यारे *ग़म, खुशी, आह, दर्द और आंसू सबकी अपनी ज़बान है प्यारे तुझको समझूं, लिखूं, पढ़ूं, सोचूं तू मेरा...

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किताबों की दुनिया - 230

साँप बनकर डस रही हैं सब तमन्नाएँ यहाँ कारवाँ आकर कहाँ ठहरा दिल-ए-बेताब का *कुछ दूर हम भी साथ चले थे कि यूँ हुआ कुछ मसअलों पे उनसे तबीयत नहीं मिली *वो और लोग थे जो माँग ले गए सब कुछ यहाँ तो शर्म थी...

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किताबों की दुनिया - 231

"एक मनुष्य संघर्षों से लड़कर ही सोने के समान चमक उठता है। उसका व्यक्तित्व भी संघर्षों के कारण ही निखरता है, जिसे जीवन में सब कुछ बिना परिश्रम किए मिल जाए उसे जीवन का सच्चा अर्थ ज्ञात नहीं हो पाता। जब हम...

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किताबों की दुनिया - 232

पीछे बंधे हैं हाथ मगर शर्त है सफ़रकिस से कहें कि पाँव के कांटे निकाल देचलिए शायरी के दीवानों से एक पहेली पूछी जाय इस पहेली को मेरे जैसे पुरानी हिंदी फिल्मों के प्रेमी शायद सुलझा पाएं लेकिन नई नस्ल के...

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किताबों की दुनिया - 233

भारतीय रेलवे को अपने उस मुलाज़िम पर गर्व होना चाहिए जो ऐसा शायर है जिसने उर्दू अदब को अपनी ग़ज़लों से मालामाल किया है और जिसकी ग़ज़लें दुनिया भर के ग़ज़ल गायक आज भी गाते हैं। भारतीय रेलवे का तो पता नहीं लेकिन...

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किताबों की दुनिया - 234

वो रात बहुत ही छोटी थी जिस रात तू मेरे साथ रहा *रावण मेरे अंदर बैठा रहता है दुनिया यूँ ही पुतला फूंका करती है *या रब धागा ढीला रखना कठपुतली सा नाच रहे हैं *मैं तो.. खुद से.. मैं खो बैठी जब से मैं ने...

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किताबों की दुनिया -209/2

(ये पोस्ट भाई 'मनोज मित्तल , इरशाद खान सिकंदर और गोविन्द गौतम के सहयोग के बिना संभव नहीं थी )  जिसे भी देखो हमारी तरफ ही देखता है इसी ख्याल ने दुश्वार कर दिया हमको***अजब सुरूर है खुद को गले लगाते हुए...

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किताबों की दुनिया - 234

वो रात बहुत ही छोटी थी जिस रात तू मेरे साथ रहा *रावण मेरे अंदर बैठा रहता है दुनिया यूँ ही पुतला फूंका करती है *या रब धागा ढीला रखना कठपुतली सा नाच रहे हैं *मैं तो.. खुद से.. मैं खो बैठी जब से मैं ने...

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किताबों की दुनिया - 235

कब तक मुझे घेरे में रखेंगी ये चटानें रिस-रिस के निकलने का हुनर सीख रहा हूं *खो दिया सब ताप बादल से लिपट कर धूप भी किसकी मोहब्बत में पड़ी है याद रख हम एक छाते के तले हैं भूल जा रिमझिम है ऊपर या झड़ी है...

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किताबों की दुनिया -236

दर्द जाएगा तो कुछ-कुछ जाएगा पर देखनाचैन जब जाएगा तो सारा का सारा जाएगा*हमसे एक एक शेर लेकर हमको ख़ाली कर दिया और ग़ज़ल ने कर लिया भरपूर अपने आप कोज़ुल्म का मौसम था और तक़रीर आती थी मुझे दो ही दिन में कर...

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किताबों की दुनिया - 237

समा सकती नहीं गुलशन की कोई शै निगाहों में कि तुम को देखकर सू-ए-गुलिस्तां कौन देखेगा सू-ए-गुलिस्तां :उपवन की ओर *यूं तो है हर शख्स़ हाजतमंद दुनिया में मगर जिस के घर में कुछ न हो उसकी ज़रूरत देखिएहाजतमंद:...

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किताबों की दुनिया - 238

बस्ती बस्ती में सुनिए जिंदाबाद के नारेपहले मुल्क होता था अब महान हैं चेहरे इस तरफ़ तिरंगा है उस तरफ़ हरा परचम लाख कीजिए कोशिश, दरमियान हैं चेहरे*लालमन की हर कोशिश मिल गई न मिट्टी मेंचार बीघा खेतों में...

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किताबों की दुनिया - 239

बड़े वसूक़ से दुनिया फ़रेब देती रही बड़े ख़ुलूस से हम ऐ'तबार करते रहे *रविश रविश पे चमन के बुझे बुझे मंजर ये कह रहे हैं यहाँ से बहार गुज़री है*मज़हब का सिर्फ़ नाम है वरना समाज पर अब तक है मुहर सब्द वही जात...

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किताबों की दुनिया - 240

पहाड़ - हम जैसे मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए पहाड़ तफ़रीह के लिए हैं। शहर की घुटन से निज़ात पाने को खुली शुद्ध हवा में साँस लेने के लिए, झुलसाती गर्मी से परेशान हो कर ठण्डी हवाओं की तलाश के लिए...

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किताबों की दुनिया - 241

अज़ीब है ये सतरंगी शोहरत की चिड़िया। मैंने देखा है कि अक्सर इसे जिस नाम की मुंडेर पर बैठ कर चहचहाना होता है उसे छोड़ ऐसी मुंडेर पर बैठ कर गीत गाती है जो इस लायक भी नहीं होती कि उस पर कव्वे बैठ कर काँव...

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किताबों की दुनिया - 242

आठवें दशक के शुरुआत की बात है जब मैं पहली बार औरंगाबाद गया था। यही कोई जुलाई अगस्त का महीना होगा।  जब मैं एलोरा देखने गया तो हल्की फुहारें गिर रहीं थी और एलोरा इतना खूबसूरत लग रहा था कि क्या कहूँ।...

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