किताबों की दुनिया -206 /2
'गुलाम अब्बास'जिस गांव में रहते थे वहाँ रहते हुए शायरी की दुनिया में आगे बढ़ने के रास्ते कम थे लेकिन घर की मज़बूरियों की वजह से उनका लाहौर जाने का सपना पूरा नहीं हो पा रहा था। कोई उन्हें राह दिखाने वाला...
View Articleकिताबों की दुनिया :207
सियासी लोग खो बैठे हैं पानी सभी कीचड़ से कीचड़ धो रहे हैं ***दोस्ती, प्यार, जर्फ़, हमदर्दी हमने देखे हैं कटघरे कितने ***कब से रोज़ादार हैं आँखें तेरी दीद का आदाब कर इफ़्तार कर ***एक मुस्कान को आंसू ने ये खत...
View Articleकिताबों की दुनिया -208
सोना लेने जब निकले तो हर हर ढेर में मिट्टी थी जब मिट्टी की खोज में निकले सोना ही सोना देखा *** मैं तो घर में अपने आप से बातें करने बैठा था अन देखा सा इक चेहरा दीवार पे उभरा आता है *** प्यासी बस्ती...
View Articleकिताबों की दुनिया 209 /1
कहीं ये इश्क की वहशत को नागवार न हो झिझक रहा हूँ तिरे ग़म को प्यार करते हुए वहशत :उन्माद ***देख तितली की अचानक परवाज़ शाख़ से फूल उड़ा हो जैसे ***अजीब फ़ैसला था रौशनी के ख़ालिक़ का कि जो दिया भी नहीं थे वही...
View Articleकिताबों की दुनिया -209/2
(ये पोस्ट भाई 'मनोज मित्तल , इरशाद खान सिकंदर और गोविन्द गौतम के सहयोग के बिना संभव नहीं थी ) जिसे भी देखो हमारी तरफ ही देखता है इसी ख्याल ने दुश्वार कर दिया हमको***अजब सुरूर है खुद को गले लगाते हुए...
View Articleकिताबों की दुनिया -210
उसने पढ़ी नमाज तो मैंने शराब पी दोनों को, लुत्फ़ ये है बराबर नशा हुआ***जरूरत है न जल्दी है मुझे मरने की फिर भी मेरे अंदर बहुत कुछ चल रहा है खुदकुशी सा***जादू भरी जगह है बाजार, तुम न जाना इक बार हम गए थे...
View Articleकिताबों की दुनिया -211
(ये पोस्ट भाई अखिलेश तिवारी और जनाब लोकेश कुमार सिंह 'साहिल' जी के सहयोग के बिना संभव नहीं थी )आज 'किताबों की दुनिया'की इस शृंखला का आगाज़ पद्मभूषण जनाब "गोपीचंद नारंग"साहब की उस टिप्पणी से करते हैं...
View Articleकिताबों की दुनिया -212
अगर मानूस है तुमसे परिन्दा तो फिर उड़ने को पर क्यूँ तौलता है [ मानूस : हिला हुआ ]कहीं कुछ है,कहीं कुछ है,कहीं कुछ मिरा सामान सब बिखरा हुआ है अभी तो घर नहीं छोड़ा है मैंने ये किसका नाम तख़्ती पर लिखा है...
View Articleकिताबों की दुनिया -213
सूरज है वो कि चाँद है देखूँगा फिर उसे पहले वो मेरी आँख का कंकर निकाल दे ***होगा न सेहरकारी में उससे बड़ा कोई वो बूँद रक्खे सीप में गौहर निकाल दे [ सेहरकारी : जादूगरी ]***काँटे तो सब निकाल लिये मैंने...
View Articleकिताबों की दुनिया - 214
आप कहते थे के रोने से न बदलेंगे नसीब उम्र भर आपकी इस बात ने रोने न दिया *अगर खुद को भूले तो, कुछ भी न भूले के चाहत में उनकी , ख़ुदा को भुला दें*हम नींद की आगोश से क्यूँ चौंक उठे हैं ख़्वाबों में कहीं...
View Articleकिताबों की दुनिया -215
इस इंतज़ार में हूँ शाख़ से उतारे कोई तुम्हारे क़दमों में ले जा के डाल दे मुझको *तूने मुझे छुआ था क्या जाने वो मोजिज़ा था क्या हिज़्र की साअतों में भी मुझको विसाल-सा रहा मोजिज़ा :चमत्कार , हिज़्र: जुदाई...
View Articleकिताबों की दुनिया -216
पते की बात भी मुँह से निकल ही जाती है कभी कभी कोई झूठी ख़बर बनाते हुए *मिज़ां तक आता जाता है बदन का सब लहू खिंच कर कभी क्या इस तरह भी याद का काँटा निकलता है मिज़ां :पलक *मैं अपने आप में गुम था मुझे ख़बर न...
View Articleकिताबों की दुनिया : 217
जाने क्या अंजाम होगा अब मिरी तक़दीर का ख़ुदकुशी के वक़्त टूटा सिलसिला ज़ंजीर का सिलसिला :कड़ी उसने दिल की धड़कने मुझको सुनाने के लिए डाला है तावीज़ गर्दन में मिरी तस्वीर का भैंस की आँखों पे पट्टी बांध कर...
View Articleकिताबों की दुनिया -218
शहरों का भटकना मिरी आदत का करम थाजंगल की शुरुआत तिरी याद ने की है*एक ही तीर है तरकश में तो उजलत न करोऐसे मौक़े पे निशाना भी ग़लत लगता है*क़त्ल होने की सिफ़त बाद के असबाक़ में हैपहले ख़ंजर की कसौटी पे उतरना...
View Articleकिताबों की दुनिया -219
तेरी शर्तों पे ही करना है अगर तुझको क़बूल ये सहूलत तो मुझे सारा जहाँ देता है *सभी ने देखा मुझे अजनबी निगाहों से कहाँ गया था अगर घर नहीं गया था मैं *मुस्कुराना सिखा रहा हूँ तुझे अब तिरा दुःख भी पालना...
View Articleकिताबों की दुनिया - 220
ये जो मौजूद है इसी में कहीं इक ख़ला है तुझे नहीं मालूम तब कहाँ था वो अब कहाँ पर है पूजता है ! तुझे नहीं मालूम इश्क़ खुलता नहीं किसी पर भी दायरा है ! तुझे नहीं मालूम रोते-रोते ये क्या हुआ तुझको हँस पड़ा है...
View Articleकिताबों की दुनिया - 221
बच्चे साँस रोके बैठे थे तभी मंच से नाम की घोषणा हुई और उसके बाद जो तालियाँ बजी उन्होंने रुकने का नाम ही नहीं लिया। रूकती भी कैसे ? आखिर ऐसा करिश्मा स्कूल में पहली बार जो हुआ था। लगातार तीसरी बार प्रथम...
View Articleकिताबों की दुनिया - 222
जो अपनी ज़मीनों की हिफ़ाज़त नहीं करते इज़्ज़त के फ़लक उनसे मुहब्बत नहीं करते *जाने किसलिए हस्सास इतना दिल हुआ मेरा तबस्सुम में मुझे आवाज़ आती है कराहों की हस्सास :संवेदनशील *ख़त हमारे रख लिए और हमसे नज़रें फेर...
View Articleकिताबों की दुनिया - 223
बात सन 1991 की गर्मियों की है जब भोपाल में रात के तीन बजे मुशायरे के नाज़िम ज़नाब अनवर जलालपुरी साहब ने माइक पर कहा कि 'हज़रात, आइये ज़िन्दगी के जो फ़ीके तीखे रंग हैं उनकी रोमानी कैफ़ियत को ग़ज़ल में बड़ी...
View Articleकिताबों की दुनिया - 224
मैं रोज़ इधर से गुज़रता हूँ कौन देखता है मैं जब इधर से न गुज़रूँगा कौन देखेगा *मिरि तबाहियों का भी फ़साना क्या फ़साना है न बिजलियों का तज़्किरा न आशियाँ की बात है तज़्किरा : वर्णन निगाह में बसा-बसा निगाह से...
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